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________________ ३७३ शब्दार्थभोः भोः भव्यलोकाः !-हे । सकल-सुरासुरेन्द्रैः सह-सब सुरेन्द्र भव्यजनो! ___और असुरेन्द्रोंके साथ। इह हि-इसी जगत्में, इसी ढाई | समागत्य-आकर । द्वीपमें । सविनयम्-विनयपूर्वक । भरतैरावत-विदेह- सम्भवानां- | अर्हद्भट्टारकं-पूज्य अरिहन्त देवको। भरत, ऐरावत और महाविदेह गृहीत्वा-हाथमें ग्रहण करके । क्षेत्र में प्रादुर्भूत । गत्वा-जाकर । समस्त-तीर्थकृता-सर्व तीर्थ कनकादि-शृङ - मेरु - पर्वतके ङ्करोंके । शिखरपर। समस्त -सर्व । तीर्थ कृत- विहित-जन्म-अभिषेकः - जिसने तीर्थङ्कर। । जन्माभिषेक किया है ! जन्मनि-जन्मपर, जन्मके समय- | शान्तिम् उद्घोषयति-शान्तिकी पर। । उद्घोषणा करता है । आसन-प्रकम्पानन्तरं- आसनका | यथा-जैसे। प्रकम्प होनेके पश्चात्, सिंहा ततः-इसलिये। सन कम्पित होनेके पश्चात् । अहं-मैं। कृतानुकारमिति कृत्वा – किये अवधिना-अवधिज्ञानसे । हुएका अनुकरण करना ऐसा विज्ञाय-जानकर । मानकर । सौधर्माधिपतिः-सौधर्मेन्द्र । कृत-किया हुआ। अनुकारसुघोषा-घण्टा - चालनानन्तरं अनुकरण। इति-ऐसा। सुघोषा नामक घण्टा बजानेके कृत्वा-करके, मानकर । बाद । 'महाजनो येन गतः स पन्थाः ' सुघोषा-घण्टा-सुघोषा नामक इति-महाजन जिस मार्गसे देवलोकका घण्टा । चालन- जाय, वही मार्ग' ऐसा बजाना । अनन्तर-बाद । मानकर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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