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शब्दार्थभोः भोः भव्यलोकाः !-हे । सकल-सुरासुरेन्द्रैः सह-सब सुरेन्द्र भव्यजनो!
___और असुरेन्द्रोंके साथ। इह हि-इसी जगत्में, इसी ढाई | समागत्य-आकर । द्वीपमें ।
सविनयम्-विनयपूर्वक । भरतैरावत-विदेह- सम्भवानां- |
अर्हद्भट्टारकं-पूज्य अरिहन्त
देवको। भरत, ऐरावत और महाविदेह
गृहीत्वा-हाथमें ग्रहण करके । क्षेत्र में प्रादुर्भूत ।
गत्वा-जाकर । समस्त-तीर्थकृता-सर्व तीर्थ
कनकादि-शृङ - मेरु - पर्वतके ङ्करोंके ।
शिखरपर। समस्त -सर्व । तीर्थ कृत- विहित-जन्म-अभिषेकः - जिसने तीर्थङ्कर।
। जन्माभिषेक किया है ! जन्मनि-जन्मपर, जन्मके समय- | शान्तिम् उद्घोषयति-शान्तिकी पर।
। उद्घोषणा करता है । आसन-प्रकम्पानन्तरं- आसनका | यथा-जैसे। प्रकम्प होनेके पश्चात्, सिंहा
ततः-इसलिये। सन कम्पित होनेके पश्चात् ।
अहं-मैं।
कृतानुकारमिति कृत्वा – किये अवधिना-अवधिज्ञानसे ।
हुएका अनुकरण करना ऐसा विज्ञाय-जानकर ।
मानकर । सौधर्माधिपतिः-सौधर्मेन्द्र ।
कृत-किया हुआ। अनुकारसुघोषा-घण्टा - चालनानन्तरं
अनुकरण। इति-ऐसा। सुघोषा नामक घण्टा बजानेके कृत्वा-करके, मानकर । बाद ।
'महाजनो येन गतः स पन्थाः ' सुघोषा-घण्टा-सुघोषा नामक इति-महाजन जिस मार्गसे
देवलोकका घण्टा । चालन- जाय, वही मार्ग' ऐसा बजाना । अनन्तर-बाद । मानकर ।
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