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________________ ३६० सुर-वर-रइगुण - पंडियआहिं-। सुद्ध-दोष-रहित । सज्ज-प्रकृष्ट देवोंको उत्तम प्रकारको प्रीति । गुणवाला ।गीय-गीत। पाय उत्पन्न करने में कुशल । -जाल-पायजेब, पाँवका रइ-प्रीति । पंडियआ-कुशल । एक प्रकारका आभषण । वंस-सह-तंति-ताल - मेलिए- घंटिआ-धुंघरू। वंशी आदिके शब्दमें वीणा | वलय - मेहला - कलाव--नेउ-- और ताल आदिके स्वरको राभिराम-सह-मीसए कएमिलाती हुई। कङ्कण, मेखला, कलाप और वंस-वंशी । सद्द-शब्द । तंति- झाँझरके मनोहर शब्दोंका वीणा । मेलिअ--मिलाना। मिश्रण करतो। तिउक्खराभिराम - सद्द - मी- वलय-कङ्कण । मेहला-मेखला। सए-कए - आनद्ध वाद्योंके कलाव-कलाप । नेउर-नूपुर, नादका मिश्रण करती । झाँझर। अभिराम-मनोहर । तिउक्खर-मृदङ्ग, पणव और सद्द-शब्द । मीसए कएदर्दुरक नामके चमड़ेके मढ़े मिश्रण करती। हुए वाद्य। अभिराम-प्रिय। अ-और। सद्द-शब्द । मीसअ-कअमिश्रण करना। देव-नट्टिआहि-देवनतिकाओंसे । [ अ-और । ] देवलोकमें नृत्य-नाटय आदिका सुइ-समाणणे अ- और श्रुति कार्य करनेवाली देवनतिका योंको समान करती हुई। कहलाती है। | हाव-भाव - विभम - पगारसुइ-स्वरका सूक्ष्म भेद । समाणण-सममें लानेको क्रिया । एहि-हाव, भाव और विभ्रमशुद्ध-सज्ज-गोय-पाय - जाल के प्रकारोंसे । घंटिआहि-दोष-रहित प्रकृष्ट हाव--मुखसे की जानेवाली चेष्टा । गुणवाले गीत गाती तथा पाद- भाव-मानसिक भावोंसे जाल - पायजेबकी घुघरू दिखायी जानेवाली चेष्टा । बजाती। विन्भम-नेत्रके प्रान्तभागसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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