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________________ ३५९ वलय- मेहला - कलाव - नेउरा भिराम - सह - मीसए - कए -अ, देव - नट्टिआहिं हाव-भाव - विब्भम - पगार एहिं नच्चिऊण अंगहारएहिं ॥ ३१ ॥ ( - नारायओ ( ३ ) ॥ ) वंदिया य जस्स ते सुविकमा कमा, तयं तिलोय - सव्व - [ सत्त ] -संतिकारयं । पसंत - सव्व - पाव -- दोसमेस हं, नमामि संतिमुत्तमं जिणं ।। ३२ ।। [ ३१ ] शब्दार्थ B थुय दियस्सा - स्तुत और वन्दित । रिसि - गण - देव - गणेहिं - ऋषि और देवताओंके समूहसे । रिसि - गण - ऋषियों का समूह । देवगण-देवताओंका समूह । जस्स - तो- बादमें । देव - बहि-देवाङ्गनाओंसे । पयओ - प्रणिधानपूर्वक | पण मियअस्सा • प्रणाम - जाते हैं । www जगुत्तम - सासणअस्सा जिनका जगत् में शासन है । किये Jain Education International उत्तम - ( अ ) नारायओ ( ४ ) ॥ जस्स - जिनका | जगुत्तम-जगत्में उत्तम । सासण - शासन | भत्ति - वसागय - पिंडयआहिंभक्तिवश एकत्र हुई | भक्ति-भक्ति । वसागय -वशी भूत होकर आयी हुई । पिंडियआ - एकत्र हुई । देव-वरच्छरसा - बहुआ हिं- स्व र्गकी अनेक सुन्दरियाँ । देव - विमानवासी देव । वरच्छरसा-श्रेष्ठ अप्सराएँ, स्वर्ग की सुन्दरियाँ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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