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वलय- मेहला - कलाव - नेउरा भिराम - सह - मीसए - कए -अ, देव - नट्टिआहिं हाव-भाव - विब्भम - पगार एहिं नच्चिऊण अंगहारएहिं ॥ ३१ ॥
( - नारायओ ( ३ ) ॥ )
वंदिया य जस्स ते सुविकमा कमा, तयं तिलोय - सव्व - [ सत्त ] -संतिकारयं । पसंत - सव्व - पाव -- दोसमेस हं, नमामि संतिमुत्तमं जिणं ।। ३२ ।। [ ३१ ]
शब्दार्थ
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थुय दियस्सा - स्तुत और वन्दित । रिसि - गण - देव - गणेहिं - ऋषि और देवताओंके समूहसे । रिसि - गण - ऋषियों का समूह ।
देवगण-देवताओंका समूह ।
जस्स
-
तो- बादमें ।
देव - बहि-देवाङ्गनाओंसे ।
पयओ - प्रणिधानपूर्वक | पण मियअस्सा • प्रणाम
-
जाते हैं ।
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जगुत्तम - सासणअस्सा
जिनका जगत् में शासन है ।
किये
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उत्तम
- ( अ ) नारायओ ( ४ ) ॥
जस्स - जिनका | जगुत्तम-जगत्में उत्तम । सासण - शासन | भत्ति - वसागय - पिंडयआहिंभक्तिवश एकत्र हुई | भक्ति-भक्ति । वसागय -वशी
भूत होकर आयी हुई । पिंडियआ - एकत्र हुई । देव-वरच्छरसा - बहुआ हिं- स्व
र्गकी अनेक सुन्दरियाँ ।
देव - विमानवासी देव । वरच्छरसा-श्रेष्ठ अप्सराएँ, स्वर्ग
की सुन्दरियाँ ।
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