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दिखाया जानेवाला विकार प्राणियोंको शान्ति करनेवाले। विशेष ।
तिलोय-तीन लोक । सव्व-सर्व । नच्चिऊण अंगहारएहि - अङ्ग
सत्त-प्राणी । संति-कारयहारोंसे नृत्य करके ।।
शान्ति करनेवाले। नच्चिऊण-नृत्य करके । अंगहारअ-अङ्गहार । शरीरके पसंत - सव्व-पाव - दोसं-जो अङ्गोपाङ्गोंसे विविध अभि
सर्व पाप और दोषों-रोगोंसे नय करनेको अङ्गहार
रहित हैं। कहते हैं।
पसंत-प्रशान्त, रहित ।
पाव-पाप । दोस-दोष, वंदिया-बन्दित ।
रोग। य-और। जस्स-जिनके ।
एस हं-यह मैं । ते-बे ( दोनों)।
नमामि-नमन करता हूँ, नमसुविकमा कमा-उत्तम पराक्रम
स्कार करता हूँ। शाली चरण । तयं-उन ।
संति-श्रीशान्तिनाथको। तिलोय- सव्व-( सत्त)- संति- उत्तम-उत्तम । ___कारयं-तीनों लोकके सर्व । जिणं-जिन भगवान् ।
अर्थ-सडुलना
देवोंको उत्तम प्रकारकी प्रीति उत्पन्न करने में कुशल ऐसी स्वर्गकी सुन्दरियाँ भक्तिवश एकत्रित होती हैं। उनमेंसे कुछ वंशी आदि सुषिर वाद्य बजाती हैं, कुछ ताल आदि घनवाद्य बजाती हैं और कुछ नृत्य करती जाती हैं और पाँवमें पहने हुए पायजेबके धुंघरुओंके शब्दको कङ्कण, मेखला-कलाप और नूपुरकी ध्वनिमें मिलाती जाती हैं, उस समय जिनके मुक्ति देने योग्य, जगत्में उत्तम शासन करनेवाले तथा सुन्दर पराक्रमशाली चरण पहले ऋषि और देवताओंके समूहसे स्तुत
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