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मूल
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( कलापकद्वारा श्री अजितनाथको स्तुति )
अंबरंतर - विआरणिआहिं, ललिय - हंस - बहु - गामिणिआहिं । पीण - सोणि- थण - सालिणिआहिं,
सकल-कमल-दल-लोअणिआहिं ।। २५ ।। [ २६ ]
-दीवयं ॥
पीण- निरंतर - थणभर - विणमिय - गाय - लयाहिं, मणि - कंचन - पसिटिल - मेहल - सोहिय - सोणि- तडाहिं । वर-खिखिणि-नेउर-सतिलय - वलय-विभूसणिआहिं, रइकर - चउर - मणोहर - सुंदर - दंसणिआहिं ॥ २६॥ [२७]
-चित्तक्खरा ||
देव - सुंदरीहिं पाय - वंदिआहिं वंदिया य जस्स ते सुविक्कमा कमा
अप्पणी निडालएहिं मंडणोडण - पगार एहिं
केहि केहि वि ?
अवंग - तिलय - पत्तलेह - नामएहिं चिल्लएहिं संगयंगाहिं भत्ति - संनिविट्ठ - वंदनागयाहिँ हुंति ते ( य ) वंदिया पुणो पुणो ||२७|| [ २८ ] - नारायओ ( २ ) ||
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