SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५३ राग - दोस - भय - मोह - दाणव-दानव । नरिंद-नरेन्द्र । वज्जियं-राग, द्वेष, भय और वंदिय-वन्दित। भोहसे रहित । संति-श्रीशान्तिनाथको । देव - दाणव-नरिंद - वंदियं - उत्तम-उत्तम, श्रेष्ठ । देवेन्द्र, दानवेन्द्र और नरेन्द्रोंसे । महातवं-महान् तपस्वीको । वन्दित । नमे-नमस्कार करता हूँ। अर्थ-सडुलना सैकड़ों श्रेष्ठ विमान, सैकड़ों दिव्य-मनोहर सुवर्णमय रथ और सैकड़ों घोड़ोंसे समूहके जो शीघ्र आये हुए हैं और वेग-पूर्वक नीचे उतरनेके कारण जिनके कानके कुण्डल,भुजबन्ध और मुकुट क्षोभको प्राप्त होकर डोल रहे हैं और चञ्चल बने हैं; तथा जो ( परस्पर) वैर-वृत्तिसे मुक्त और पूर्ण भक्तिवाले हैं; जो शीघ्रतासे एकत्रित हुए हैं और बहुत आश्चर्यान्वित हैं तथा सकल-सैन्य परिवारसे युक्त हैं; जिनके अङ्ग उत्तम जातिके सुवर्ण और रत्नोंसे बने हुए तेजस्वी अलङ्कारोंसे देदीप्यमान हैं; जिनके गात्र भक्तिभावसे नमे हुए हैं तथा दोनों हाथ मस्तकपर जोड़कर अञ्जलि-पूर्वक प्रणाम कर रहे हैं, ऐसे सुर और असुरोंके सङ्घ जो जिनेश्वर प्रभुको वन्दन कर, स्तुति कर, वस्तुतः तीन बार प्रदक्षिणा-पूर्वक नमनकर अत्यन्त हर्षपूर्वक अपने भवनोंमें वापस लौटते हैं, उन राग, द्वेष, भय और मोहसे रहित और देवेन्द्र, दानवेन्द्र एवं नरेन्द्रोंसे वन्दित श्रेष्ठ महान् तपस्वी और महामुनि श्रीशान्तिनाथ भगवान्को मैं भी अञ्जलिपूर्वक नमस्कार करता हूँ॥ २२-२३-२४ ॥ प्र-२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy