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________________ ३५२ अत्यन्त आश्चर्यान्वित और सकल परिवार से क् सम्मान की भा आयर-आदर, वना । भूसिय- अलङ्कृत, युक्त, संभम - शीघ्रतापूर्वक । पिंडिय - एकत्रित । सुट्ठअच्छी तरह अत्यन्त । सुविम्हि - आश्चर्यान्वित । सव्व- सर्व, सकल । बलसैन्य, परिवार । ओध - समूह | उत्तम - कंचन - रयण -परूविय । - भासुर-भूसण- भासुरियंगा - - उत्तम जातिके सुवर्ण और रत्नोंसे बने हुए तेजस्वी अलङ्कारोंसे देदीप्यमान अङ्गवाले | कंचन - सुवर्ण । रयण - रत्न | | परूविय बने हुए | भासुरतेजस्वी | भूसण - अलङ्कार | भासुरियंगा - देदीप्यमान अङ्ग Jain Education International गाय- समोणय-भत्ति - वसागयपंजलि - पेसिय-सीस पणामा - - शरीरद्वारा सम्यग् प्रकारसे नमे हुए, भक्तिके वशीभूत होकर आये हुए अञ्जलिपूर्वक नमस्कार करते हुए । तथा मस्तक से गाय - गात्र, शरीर । समोणयअच्छी तरह नमे हुए । भक्ति-भक्ति । वस - काबू, वश । आगय-आये हुए | पंजलि -अञ्जलि-पूर्वक । पेसिय किया हुआ । सीस - मस्तक । पणाम, - प्रणाम, नमस्कार । वंदिऊण-वन्दन कर । थोऊण - स्तुति कर । तो - बादमें । जिणं-जिनको । तिगुणमेव - वस्तुतः तीनबार । य-और । पुणो- पुनः 1 पयाहिणं- प्रदक्षिणा देकर । पण मऊण - प्रणाम कर । य-और । जिणं-जिनको । सुरासुरा - सुर और असुर । पमुइया - प्रमुदित, हर्षित होकर | सभवणाई - अपने स्थानको । तो- तदनन्तर । गया-गये । तं - उन । महामुणि- महामुनिको । अहं पि- मैं भी । पंजली - अञ्जलि - पूर्वक | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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