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तं महामुणिमहं पि पंजली, राग-दोस-भय-मोह-वजियं । देव-दाणव-नरिंद-वंदियं,संतिमुत्तमं महातवं नमे।२४।[२५]
--खित्तयं ॥
शब्दार्थ
आगया-आये हुए।
खुभिय-क्षोभको प्राप्त। लुलियवर-विमाण-दिव्व-कणग- डोलते हुए। चल-चञ्चल ।
रह-तुरह-पहकर - सरहिं कुंडलंगय - कुण्डल - अङ्गद, -सैंकड़ों श्रेष्ठ विमान, सैंकड़ों कुण्डल-कानमें पहननेके आदिव्य मनोहर सुवर्णमय रथ भूषण । अङ्गद-भुजबन्ध ।
और सैंकड़ों घोड़ोंके समूहसे । तिरिड-मुकुट । सोहंतवर-श्रेष्ठ । विमाण विमान । शोभित, सुन्दर ।. मउलिदिव्य-दिव्य । कणग-सुवर्ण। मस्तक । माला-माला । रह-रथ । तुरय-घोड़ा। | जं-जो।
पहकर-समूह । सअ-सैंकड़ों। सुर-संघा-सुरोंके सङ्घ । हुलियं-शीघ्र।
सासुर-संघा - असुरोंके सङ्घ ससंभमोयरण- खुभिय - लुलिय।
सहित । . . चल-कुडलंगय-तिरीड- वेर-विउत्ता-वैरवृत्तिसे मक्त । सोहंत - मउलि - माला - वैर-वैमनस्य, वैर । विउत्तवेगपूर्वक नीचे उतरनेके कारण
मुक्त। क्षोभको प्राप्त हुए, डोलते भत्ति-सुजुत्ता-पूर्ण भक्तिसे और चञ्चल ऐसे कुण्डल, भुज- युक्त, पूर्ण भक्तिवाले । बंध, मुकुट तथा मस्तकपर | आयर भूसिय-संभम-पिडियसुन्दर मालाएँ धारण करनेवाले। सुछ - सुविम्हिय-सव्व - ससंभम-वेगपूर्वक । ओयरण- बलोघा-सम्मानकी भावनासे नीचे उतरनेकी क्रिया । । युक्त, शीघ्रतासे एकत्रित हुए,
ता
साद
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