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३५० मन, वचन और कायाके प्रणिधान—पूर्वक प्रणाम करता हूँ ॥ १९-२०-२१ ।। मूल
( दूसरे विशेषकद्वारा श्रीशान्तिनाथकी स्तुति ) आगया वर-विमाण-दिव्व-कणग-रह-तुरय
पहकर-सएहिं हुलियं, ससंभमोयरण- खुभिय-लुलिय-चल-कुंडलंगय-तिरीड
सोहंत-मउलि-माला ॥२२॥
-वेड्ढो ( वेढो ) ॥ जं सुर--संघा सासुर-संघा वेर-विउत्ता भत्ति-सुजुत्ता, आयर-भूसिय-संभम-पिडिय-सुट्ठ-सुविम्हिय-सव्व-बलोधा । उत्तम-कंचण--रयण--परूविय--भासुर--भूसण--भासुरियंगा, गाय--समोणय-भत्ति-वसागय-पंजलि -- पेसिय -- सीस
- पणामा ।।२३।।
-रयणमाला ॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं, तिगुणमेव य पुणो पयाहिणं । पणमिऊण य जिणं सुरासुरा, पमइया सभवणाई तो गया ।।
[२४]x
-खित्तयं ॥ . x[ .. ] कोष्ठकमें प्रदर्शित क्रमाङ्क गाथाके प्रचलित-क्रमका सूचन करते हैं। ..
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