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३४४ सत्ते अ सया अजियं, सारीरे अ बले अजियं तव-संजमे अअजियं, एस थुणामि जिणं अजिय॥१६॥
-भुअगपरिरिंगिअं॥ शब्दार्थविमल - ससि - कलाइरेअ- धरणि-धर - पर्वत। प्पवर
सोम-निर्मल चन्द्रकलासे भी श्रेष्ठ । धरणि-धर-प्पवरसौम्य ।
मेरु-पर्वत । विमल-निर्मल । ससि-चन्द्र । सत्ते-आत्म-बलमें ।
अइरेअ-अधिक। सोम- | अ-और । सौम्य।
सया-निरन्तर । वितिमिर - सूर - कराइरेअ
अजियं - अजित, अन्यसे नहीं तेअं-आवरण रहित सूर्यकी
जीते हुए। किरणोंसे भी अधिक तेजवाले।
सारीरे-शारीरिक । वितिमिर - आवरण रहित ।
अ-और । सूर-सूर्य । कर - किरण ।
बले-बलमें। तेज-तेज ।
अजियं-अजित। तिअस-वइ-गणाइरेअ - रूवं
तव-संजमे-तप तथा संयममें । इन्द्रोंके समूहसे भी अधिक
अ-और रूपवान् । तिअस-त्रिदश, देव । वइ-पति, | अजियं-अजित ।
स्वामी । रूव-रूप। एस-यह । धरणि-घर-प्पवराइरेअ-सारं- थुणामि-मैं स्तुति करता हूँ।
मेरुपर्वतसे भी अधिक | जिणं-जिनकी। दृढ़तावाले ।
| अजियं-अजितनाथको। अर्थ-सङ्कलना
निर्मल-चन्द्रकलासे भी अधिक सौम्य, आवरण-रहित सूर्यको
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