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________________ चुलसी हयगय रहसय सहस्स - सामी- चौरासी लाख घोड़े, चौरासी लाख हाथी और चौरासी लाख रथके स्वामी । चुलसा - चौरासी । हय - घोड़ा । गय- हाथी । सय- सहस्सलाख । सामी - स्वामी । ३३९ छन्नवइ-गाम- कोडि - सामी छियानबे करोड़ गाँवोंके अधिपति । छन्नवई - छियानबे । गाम-गाँव । कोडि-करोड़ । सामी अधिपति । य-और । आसी-थे । जो-जो । भारहंमि - भरतक्षेत्र में । अर्थ- सङ्कलना- Jain Education International भयवं - भगवान् । तं - उन ! संति-साक्षात् शान्ति मूर्तिमान् उपशम जैसे । संतिकरं - शान्ति करनेवाले । संतिण्णं- अच्छी तरहसे जैसे, हुए । सव्वभया - सर्व प्रकार के भयोंसे । P तिरे संति - श्रीशान्तिनाथ भगवान्की । थुणामि स्तुति करता हूँ । ( च - और ) | विहे- देने को | मे- मुझे जिणं - रागादि शत्रुओंको जीतनेवाले | संति - शान्ति । जो भगवान् प्रथम भरतक्षेत्र में कुरुदेश के हस्तिनापुर के राजा थे और तदनन्तर महाचक्रवर्ती के राज्यको भोगनेवाले महान् प्रभाववाले हुए, तथा बहत्तर हजार मुख्य शहर और हजारों नगर तथा निगमवाले देशके अधिपति बने; कि जिनके मार्गका बत्तीस हजार उत्तम भूप अनुसरण करते थे, और जो चौदह वररत्न, नव महानिधि, चौंसठ हजार सुन्दर स्त्रियोंके स्वामी बने थे, तथा चौरासी लाख For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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