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३३८ तं संति संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संति (च) विहेउं मे ॥१२॥
-रासाणंदिययं ।। शब्दार्थकुरु - जणवय - हत्थिणाउर - नगर-शहर। निगम-व्यानरोसरो-कुरुदेशके हस्तिनापुरके पारियोंकी बस्तीवाला गाँव । राजा ।
जणवय - जनपद, देश । कुरु-जणवय - कुरुदेश। हत्थि- वई-पति ।
णाउर-हस्तिनापुर । नरीसर- | बत्तीसा-रायवर - सहस्साणु - नरेश्वर, राजा।
याय-मग्गो-जिनके मार्गका य-और।
बत्तीस हजार भूप अनुसरण पढमं-पहले, प्रथम।
करते थे। तओ-तदनन्तर ।
बत्तीसा-बत्तीस । रायवरमहाचक्कवट्टि-भोए-महान् च
उत्तम राजा । अणुयाय-अनुक्रवर्तीके राज्यको भोगनेवाले।
सरण करना । मग्ग-मार्ग । महाचक्कवट्टि-महान् चक्रवर्ती।
चउदस-वररयण-नव - महाभोअ-भोग, राज्य।
निहि-चउसट्टि - सहस्स - महप्पभावो-महान् प्रभाववाले ।।
पवर-जुवईण-सुदरवई - जो-जो।
चौदह उत्तम रत्न, नव महाबावत्तरि-पुरवर-सहस्स - वर निधि, चौंसठ हजार श्रेष्ठ -नगर-निगम - जणवयवई
स्त्रियोंके सुन्दर स्वामी।। बहत्तर हजार मुख्य शहरों
और हजारों नगर तथा चउदस-चौदह । वररयण-वर निगमवाले देशके पति ।
रत्न । महानिहि-महानिधि । बावत्तरि-बहत्तर । पुरवर-मुख्य चउसट्ठि - चौंसठ । पवर। शहर । सहस्स-हजार ।
श्रेष्ठ । जुवई-स्त्री।
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