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________________ सुइ-सुह-मणाभिराम-परम-रमणिज-वर-देव-दुंदुहिनिनाय-महुरयर-सुहगिरं ॥९॥ -वेड्ढओ ( वेढो)॥ अजियं जियारिगणं, जिय-सव्व-भयं भवोह-रिउं । पणमामि अहं पयओ, पावं पसमेउ मे भयवं ॥१०॥ -रासालुद्धओ ॥ शब्दार्थ-- सावत्थि - पुव्व - पत्थिवं - । मयगल - लीलायमाण - वर - श्रावस्ती नगरीके पूर्व (कालमें) गंधहत्थि-पत्थाण-पत्थियंराजा। जिनका मद झर रहा हो और सावत्थि-श्रावस्ती ( आधुनिक लीलायुक्त श्रेष्ठ गंध हस्तिके बहराइच जिले का सहेट जैसी गतिसे चलते हुए। ग्राम ) पुव्व-पूर्व । पत्थिव मयगल-जिसका मद झर रहा राजा । हो। लीलायमाण-लीलायुक्त। च-और। वर-श्रेष्ठ । गंधहत्थि-गन्धवरहत्थि-मत्थय-पसत्थवित्थिन्न-संथियं श्रेष्ठ हाथीके हस्ती। पत्थान-प्रस्थान, कुम्भस्थल जैसे प्रशस्त और गति । पत्थियं-प्रस्थित, विस्तोर्ण संस्थानवाले। चलते हुए। वर-श्रेष्ठ । हत्थि-हाथी । मत्थय-- | संथवारिहं-प्रशंसाके योग्य । कुम्भस्थान । पसत्थ-प्रशस्त। हत्थि-हत्थ-बाहु-हाथी की सूंड वित्थिन्न-विस्तीर्ण । संथिय जैसी दीर्घ और ( सुन्दर ) संस्थान । भुजावाले। थिर-सरिच्छ - वच्छं - निश्चल हत्थि-हत्थ-हाथोकी सूंड़ । और अविषम वक्षःस्थल वाले। थिर-निश्चल। सरिच्छ-समान, बाहु-भुजा। अविषम । वच्छ-वक्षस्थल। धंत-कणग - रुअग - निरुवहय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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