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________________ शब्दार्थ अजियजिण! हे अजितनाथ ! किरिआ-कायिकी आदिपच्चीस सुह-प्पवत्तणं-शुभका प्रवर्तन प्रकारकी क्रिया। विहिकरनेवाला । विधान, करना। सञ्चितसुह-सुख, शुभ । प्पवत्तण एकत्रित । कम्म-ज्ञानावरप्रवर्तन करनेवाला। णोय आदि कर्म । किलेसतव-आपका। पोड़ा। विमुक्खयर-विशेषपुरिसुत्तम!-हे पुरुषोत्तम ! तापूर्वक मुक्त करनेवाला, नाम-कित्तणं-नामस्मरण । सर्वथा छुड़ाने वाला। कित्तण-कीर्तन, स्मरण । | अजिय-पराभूत न हो ऐसा तह य-वैसा ही। ____ सर्वोत्कृष्ट । 'धिइ-मइ -प्पवत्तणं - धृतियुक्त निचियं-व्याप्त, परिपूर्ण । मतिका प्रवर्तन करनेवाला, च-और । स्थिर बुद्धिको देनेवाला । गुणेहि-गुणोंसे, सम्यग्दर्शनादि धिइ-चित्तका स्वास्थ्य, स्थिरता। गुणोंसे । मइ-बुद्धि। महामुणि - सिद्धिगयं - महामुतव-आपका। नियोंको ( अणिमादि आठों) य-और। सिद्धियोंको प्राप्त करानेवाला। जिणुत्तम !-हे जिनोत्तम ! महामुणि-योगी। सिद्धिगयसंति !-हे शान्तिनाथ ! सिद्धियोंको प्राप्त करानेवाला । कित्तणं-कीर्तन, नाम-स्मरण । अजियस्स-श्रीअजितनाथका। किरिआ-विहि संचिय-कम्म | य-और । - किलेस - विमुक्खयरं - संति - महामुणिणो वि य - कायिकी आदि पच्चीस प्रकारकी श्रीशान्तिनाथ भगवान्का भी। क्रियाओंसे सञ्चित कर्मको | संतिकर-शान्तिकर । पीड़ासे छुड़ाने वाला। सययं-सदा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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