________________
३२९
वाले और सदा अखण्ड शान्ति धारण करनेवाले श्रीअजितनाथ और श्रीशान्तिनाथको नमस्कार हो ॥ ३ ॥
( श्रीअजितनाथ और श्रीशान्तिनाथकी विशेषकद्वारा स्तुति )
अजियजिण ! सुह-प्पवत्तणं, तव पुरिसुत्तम ! नाम-कित्तणं । तह य धिइ-मइ-प्पवत्तणं तव य जिणुत्तम ! संति ! कित्तणं ॥४॥
-मागहिया ।। किरिआ-विहि-संचिय-कम्म-किलेस-विमुक्खयरं, अजियं निचियं च गुणेहिं महामुणि-सिद्धिगयं । अजियस्स य संतिमहामुणिणो वि य संतिकरं, सययं मम निव्वुइ-कारणयं च नमसणयं ।।६।।
-आलिंगणयं ॥
पुरिसा ! जइ दुक्ख-वारणं, जइ य विमग्गह सुक्ख-कारणं । अजियं संतिं च भावओ, अभयकरे सरणं पवज्जहा ॥६॥
-मागहिआ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org