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मम-मुझे।
| विमग्गह-खोजते हो। निव्वुइ-कारणयं-मोक्षका का- सुक्ख - कारणं- सुख प्राप्तिका रण ।
कारण । निव्वुइ-मोक्ष । कारणय-कारण।
अजियं-श्रीअजितनाथका। च-और। नमंसणयं-पूजन ।
संति-श्रीशान्तिनाथका। पुरिसा! हे पुरुषो!
च-और। जइ-यदि ।
भावओ-भावसे । . दुक्ख-वारणं - दुःख – निवारण, अभयकरे-अभय प्रदान करनेदुःख-नाशका उपाय।
वाले। वारण-निषेध, प्रत्युपाय । सरणं-शरण। जइ य-और यदि ।
| पवज्जहा-अङ्गीकृत करो।
अर्थ-सङ्कलना
हे पुरुषोत्तम ! हे अजितनाथ ! आपका नाम-स्मरण ( जैसे) शुभ ( सुख ) का प्रवर्तन करनेवाला है, वैसे ही स्थिर-बुद्धिको देनेवाला है । हे जिनोत्तम ! हे शान्तिनाथ ! आपका नाम-स्मरण भी ऐसा ही है ॥ ४॥
कायिकी आदि पचीस प्रकारकी क्रियाओंसे सञ्चित कर्मकी पीड़ासे सर्वथा छुड़ानेवाला, सम्यग्दर्शनादि गुणोंसे परिपूर्ण, महामुनियोंकी अणिमादि आठों सिद्धियोंको प्राप्त करानेवाला और शान्तिकर ऐसा श्रीशान्तिनाथ भगवान्का पूजन मेरे लिए सदा मोक्षका कारण बने।। ५।।
हे पुरुषो ! यदि तुम दुःख-नाशका उपाय अथवा सुखप्राप्तिका कारण खोजते हो तो अभयको देनेवाले श्रीअजितनाथ और श्रीशान्तिनाथकी शरण भावसे अङ्गीकृत करो।॥ ६ ॥
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