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________________ ३२० शब्दार्थ वीरः-श्रीमहावीरस्वामी। वीरात्-श्रीमहावीरस्वामीसे । . सर्व-सुरासुरेन्द्र - महितः - सर्व | तीर्थम-तीर्थ । सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रोंसे पूजित । | इदं-यह । महित-पूजित । प्रवृत्तम्-प्रवर्तित । वीरं-श्रीमहावीरस्वामीका। अतुलं-अनुपम । बुधाः-पण्डित, पण्डितोंने । वीरस्य-श्रीमहावीरस्वामीका। संश्रिताः-अच्छी प्रकारसे आश्रय घोरं-उग्र। लिया है। तपः-तप। वीरेण-श्रीमहावीरस्वामोद्वारा। अभिहतः-नष्ट किया गया है। वीरे-श्रीमहावीरस्वामोमें । स्व-कर्म-निचयः-अपना कर्म श्री - धृति - कीर्ति - कान्तिसमूह । निचयः-ज्ञानरूपी लक्ष्मी, धैर्य स्व-अपना । कर्म ज्ञानावरणादि कीर्ति और कान्तिका समूह कर्म । निचय-समूह । ( स्थित है। वीराय-श्रीमहावीरस्वामीको । श्रीवीर !-हे महावीरस्वामी ! नित्यं-प्रतिदिन । भद्र-कल्याण । नमः-नमस्कार हो। दिश करो। अर्थ-सङ्कलना श्रीमहावीरस्वामी सर्वसुरेन्द्रों और असुरेन्द्रोंसे पूजित हैं, पण्डितोंने श्रीमहावीरस्वामीका अच्छो प्रकारसे आश्रय लिया है; श्रीमहावीरस्वामीद्वारा अपने कर्म-समूहको नष्ट किया गया है; श्रीमहावीर स्वामीको प्रतिदिन नमस्कार हो, यह अनुपम चतुर्विध सङ्घरूपी तीर्थ श्रीमहावीर स्वामीसे प्रवर्तित है; श्रीमहावीरस्वामीका तप बहुत उग्र है; श्रीमहावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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