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शब्दार्थ
जयति जयको प्राप्त हो रहे हैं । विजितान्यतेजाः जिन्होंने
अन्यका तेज जीत लिया है
ऐसे, अन्य तीथिकोंके प्रभावको जीतनेवाले |
विजित-जीता हुआ । तेजस् - अन्यका तेज । सुरासुराधीश - सेवितः - सुरे
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न्द्रों और असुरेन्द्रोंसे सेवित । अधीश - अधिपति, इन्द्र |
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अन्य
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श्रीमान्- केवलज्ञानरूपी लक्ष्मीसे
युक्त । विमल:- निर्मल, अठारह दोषोंसे रहित । त्रास - विरहितः विरहितः भय मुक्त,
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सातों प्रकारके भयसे मुक्त । त्रिभुवन - चूडामणिः- त्रिभुवन के.
मुकुटमणि ।
त्रिभुवन- तीनों लोक ।
चूडा - मुकुट | मणि-मणि ।.
अर्थ- सङ्कलना
अन्य तीर्थिकोंके प्रभावको जीतनेवाले; सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रोंसे सेवित, केवलज्ञानरूपी लक्ष्मीसे युक्त, अठारह दोषोंसे रहित, सातोंप्रकारके भयसे मुक्त और त्रिभुवनके मुकुटमणि ऐसे अरिहन्त भग वान् जयको प्राप्त हो रहे हैं ॥ २८ ॥
भगवान् - अरिहन्त भगवान् ।
वीरः सर्व-सुरासुरेन्द्र-महितो, वीरं बुधाः संश्रिताः, वीरेणाभिहतः स्वकर्म - निचयो, वीराय नित्यं नमः | वीरात् तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं, वीरस्य घोरं तपो, वीरे श्री - धृति - कीर्ति - कान्ति - निचयः श्रीवीर !
भद्रं दिश ||२९||
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