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________________ शब्दार्थ जयति जयको प्राप्त हो रहे हैं । विजितान्यतेजाः जिन्होंने अन्यका तेज जीत लिया है ऐसे, अन्य तीथिकोंके प्रभावको जीतनेवाले | विजित-जीता हुआ । तेजस् - अन्यका तेज । सुरासुराधीश - सेवितः - सुरे ३१९ न्द्रों और असुरेन्द्रोंसे सेवित । अधीश - अधिपति, इन्द्र | 122 अन्य Jain Education International श्रीमान्- केवलज्ञानरूपी लक्ष्मीसे युक्त । विमल:- निर्मल, अठारह दोषोंसे रहित । त्रास - विरहितः विरहितः भय मुक्त, 1 सातों प्रकारके भयसे मुक्त । त्रिभुवन - चूडामणिः- त्रिभुवन के. मुकुटमणि । त्रिभुवन- तीनों लोक । चूडा - मुकुट | मणि-मणि ।. अर्थ- सङ्कलना अन्य तीर्थिकोंके प्रभावको जीतनेवाले; सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रोंसे सेवित, केवलज्ञानरूपी लक्ष्मीसे युक्त, अठारह दोषोंसे रहित, सातोंप्रकारके भयसे मुक्त और त्रिभुवनके मुकुटमणि ऐसे अरिहन्त भग वान् जयको प्राप्त हो रहे हैं ॥ २८ ॥ भगवान् - अरिहन्त भगवान् । वीरः सर्व-सुरासुरेन्द्र-महितो, वीरं बुधाः संश्रिताः, वीरेणाभिहतः स्वकर्म - निचयो, वीराय नित्यं नमः | वीरात् तीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं, वीरस्य घोरं तपो, वीरे श्री - धृति - कीर्ति - कान्ति - निचयः श्रीवीर ! भद्रं दिश ||२९|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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