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और चौथा प्रश्न यह पूछा जाता है कि आप चारित्रका पालन सुख-पूर्वक कर सकते हैं ? इन प्रश्नोंको पूछनेका कारण यह है कि गुरुको तप-संयम आदिकी आराधना करने में किसी भी प्रकारकी कठिनता होती हो तो उपयोगी होना । तदनन्तर गुरुको आहार-पानीके लिये निमन्त्रण देते हैं, किन्तु गुरु अपना साधु-धर्म विचारकर 'वर्तमान योग' अर्थात् 'जैसा उस समयका संयोग' ऐसा उत्तर देते हैं ।
५ इरियावहिया-सुत्तं [इरियावहियं-सूत्र]
पीठिका इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं पडिक्कमामि ? इच्छं ।
इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियाए विराहणाए । गमणागमणे।
पाण-कमणे, बीय-कमणे, हरिय-कमणे, ओसाउत्तिंग-पणग-दगमट्टी-मकडा-संताणा-संकमणे ।
जे मे जीवा विराहिया। एगिदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया।
अभिहया, वत्तिया, लेसिया, संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया, ठाणाओठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया, तस्स मिच्छा मि दुकडं ।
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