________________
के अनुकूल सुख-पूर्वक व्यतीत हुई ? ( अथवा गत दिवस आपकी इच्छाके अनुकूल व्यतीत हुआ ? ) आपकी तपश्चर्या सुख-पूर्वक होती है ? आपका शरीर पीडारहित है ? तथा हे गुरो! आपकी संयम-यात्राका निर्वाह सुख-पूर्वक होता है ? हे स्वामिन् ! आपके सर्व प्रकारकी साता है ?
[गुरु कहते हैं-'देव और गुरुकी कृपासे सब वैसा ही है; अर्थात् सुख–साता है । शिष्य इस समय अपनी हार्दिक अभिलाषा व्यक्त करता है :-] ___'मेरे यहाँसे आहार-पानी ग्रहणकर मुझको धर्मलाभ देनेकी कृपा करें। __ [गुरु इस आमन्त्रणको स्वीकार अथवा अस्वीकार न करके कहते हैं कि-]
'वर्तमान योग'-जैसी उस समयकी अनुकूलता। सूत्र-परिचय
गुरुकी सुख-साता पूछनेके लिये इस सूत्रका उपयोग होता है । उसमें प्रथम यह पूछा जाता है कि हे गुरो ! रात्रि सुखपूर्वक व्यतीत हुई ? अर्थात् आपने जो रात्रि बिताई, उसमें किसी प्रकारको अशान्ति तो नहीं हुई ? यदि वन्दन दिनके बारह बजेके पश्चात् किया हो तो रात्रिके स्थानपर दिवस बोला जाता है, जिसका अर्थ यह है कि आपने जो दिवस बिताया उसमें किसी प्रकारकी अशान्ति तो नहीं हुई ? दूसरा प्रश्न यह पूछा जाता है कि आप जो तपश्चर्या कर रहे हैं, उसमें किसी प्रकारका विघ्न तो नहीं आता ? तीसरा प्रश्न यह पूछा जाता है कि आपका शरीर पीड़ा-रहित तो है ? अर्थात् छोटी-बड़ी कोई व्याधि पीड़ा तो उत्पन्न नहीं करती ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org