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४ सुगुरु-सुखसाता-पच्छा
[गुरु-निमन्त्रण-सूत्र ]
इच्छाकार ! सुह-राइ ? (सुह-देवसि ? ) सुख-तप ? शरीर-निराबाध ? सुख-संजम-यात्रा निर्वहते हो जी ? स्वामिन् ! साता है जी ?
[ यहाँ गुरु उत्तर देवें कि-'देव-गुरु-पसाय' यह सुनकर शिष्य कहे :-]
भात पानी का लाभ देना जी ॥ शब्दार्थइच्छाकार !-हे गुरो! आपको | शरीर-निराबाध ?-शरीर पीडा
इच्छा हो तो मैं पूछू । । रहित है ? सह-राइ ?-गतरात्रि सुख-पूर्वक | सुख-संयम-यात्रा निर्वहते हो __ व्यतीत हुई ?
जी?-आप चारित्रका पालन ( सुह-देवसि ?-गतदिवस सुख- सुख-पूर्वक कर सकते हो ?, पूर्वक व्यतीत हुआ ? )
आपकी संयम-यात्राका निर्वाह सुख-तप ?-तपश्चर्या सुख-पूर्वक |
सुख-पूर्वक होता है ? होती है ?
| स्वामिन् !o-शेष अर्थ स्पष्ट है । अर्थ-सङ्कलना
[शिष्य गुरुको सुख-साता पूछता है, वह इस प्रकार:-] हे गुरो ! आपकी इच्छा हो तो पूछ् ? गत रात्रि आपकी इच्छा
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