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________________ शब्दार्थइच्छाकारेण-स्वेच्छासे। पाण-क्कमणे-प्राणियोंको दबानेसे। संदिसह-आज्ञा दीजिये। बीय-क्कमणे-बीजको दबानेसे । भगवन् !-हे भगवन् ! हरिय-क्कमणे-हरी वनस्पतिको इरियावहियं पडिक्कमामि दबानेसे। मैं ईर्यापथिको-क्रियाका प्रति- ओसा-उत्तिग-पणग-जल क्रमण करता हूँ। मट्टी-मक्कड़ा-संताणाईर्यापथ सम्बन्धी जो क्रिया वह संकमणे-ओस, चींटियोंके ईपिथिकी। ईर्यापथ-जाने- बिल, पाँच वर्ण की काई (नील आनेका मार्ग । प्रतिक्रमण- फूल), पानी वाली मिट्टी और वापस लौटनेकी (परावर्तनकी मकड़ीका जाला आदिको क्रिया। दबानेसे। इच्छं-चाहता हूँ, आपकी यह आज्ञा ओसा--ओसकी बूंदें। उत्तिंग__ स्वीकृत करता हूँ। चीटियोंका बिल । पणगइच्छामि-चाहता हूँ, अन्तःकरण- पाँच वर्ण की काई (फूलन)। की भावनापूर्वक प्रारम्भ दगमट्टी-कीचड़ । मक्कडाकरता हूँ। संताणा-मकड़ीका जाला । पडिक्कमिउं-प्रतिक्रमण करनेको। जे जीवा-जो प्राणी, जो जीव । इरिचावहियाए विराहणाए- मे विराहिया-मुझसे दुःखित हुए ईपिथिकी-क्रियाके प्रसङ्गमें हों। लगे हुए अतिचारसे, मार्गमें | एगिदिया-एक इन्द्रियवाले जीव । चलते समय हुई जीवविरा- | बेइंदिया-दो इन्द्रियवाले जीव । धनाका । विराहणा-विकृत हुई तेइंदिया-तीन इन्द्रियवाले जीव । आराधना, दोष । | चरिंदिया-चार इन्द्रियवाले जीव। गमणागमणे-कार्य-प्रयोजनमें जाते | पंचिदिया-पाँच इन्द्रियवाले जीव । और वहाँसे वापस लौटते, | अभिहया-पाँवसे मरे हों, ठोकरसे जाते-आते । मरे हों। प्र-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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