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अर्थ-सङ्कलना
दयारूपी जलसे स्वयम्भूरमण समुद्रकी स्पर्धा करनेवाले श्री-. अनन्तनाथ तुम्हारे लिये सुख-सम्पत्ति प्रदान करें।। १६ ।।
मूल
कल्पद्रुम-सधर्माणमिष्ट-प्राप्तौ शरीरिणाम् ।
चतुर्धा धर्म-देष्टारं, धर्मनाथमुपास्महे ॥१७॥ शब्दार्थकल्पद्रुम - सधर्माणम् - कल्प- । शरीरिणाम-प्राणियोंको । वृक्ष-समान।
चतुर्धा-चार प्रकारको। कल्पद्रुम-कल्पवृक्ष, इच्छित फल धर्म - देणारं - धर्मको देशना देनेवाला एक प्रकारका वृक्ष ।। सधर्म-समान ।
देनेवाले। इष्ट-प्राप्तौ-इष्ट-प्राप्तिमें, इच्छित धर्मनाथम्-श्रीधर्मनाथ प्रभुको ।
फल प्राप्त कराने में। उपास्महे-हम उपासना करते हैं। अर्थ-सङ्कलना
प्राणियोंको इच्छित फल प्राप्त कराने में कल्पवृक्ष-समान और धर्मकी दानादि भेदसे चार प्रकारकी देशना देनेवाले श्रीधर्मनाथ प्रभुको हम उपासना करते हैं ॥ १७ ॥
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मूल
सुधा-सोदर वाक्-ज्योत्स्ना--निमलीकृत-दिङ्मुखः। मृग-लक्ष्मा तमाशान्त्यै, शान्तिनाथजिनोऽस्तु वः॥१८॥
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