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मूल
सत्-किरीट-शाणाग्रोत्तेजिताङिघ्र-नखावलिः । भगवान् सुमतिस्वामी, तनोत्वमितानि वः ॥७॥ शब्दार्थधुसत्-किरीट - शाणामोत्तेजि- उत्तेजित-चकचकित की हुई।
ताङिघ्र-नखावलिः-देवोंके अज्रि-चरण । आवलि-पङ्क्ति। मुकुटरूपी शाण ( कसौटी )के | भगवान-भगवान् । अग्रभागसे जिनके चरणकी नख | सुमतिस्वामी-श्रीसुमतिनाथ । पङ्क्तियाँ चकचकित हो गयी हैं। तनोतु-प्रदान करें। द्युसत्-देव । किरीट-मुकुट । अभिमतानि-मनोवाञ्छित । शाण-कसौटी । अग्र-अग्रभाग।। वः-तुम्हें । अर्थ-सङ्कलना
जिनके चरणको नख-पङ्क्तियाँ देवोंके मुकुटरूपी कसौटीके अग्रभागसे चकचकित हो गयी हैं, वे भगवान् श्रीसुमतिनाथ तुम्हें मनोवाञ्छित प्रदान करें। ७ ।।
पद्मप्रभ-प्रभोदेह-भासः पुष्णन्तु वः श्रियम् ।
अन्तरङ्गारि-मथने, कोपाटोपादिवारुणाः ॥८॥ शब्दार्थपद्मप्रभ-प्रभोः-श्रीपद्मप्रभस्वामीके।। वः-तुम्हारो। देह-भासः-शरोरकी कान्ति। श्रियम् - लक्ष्मीको, पुष्णन्तु-पुष्ट करे।
लक्ष्मीको।
आत्म
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