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अर्थ-सङ्कलना
क्षेत्रदेवताकी आराधनाके निमित्त मैं कायोत्सर्ग करता हूँ। इसके अतिरिक्त
जिनके क्षेत्रकाआश्रय लेकर साधुओंद्वारा मोक्षमार्ग को आराधना की जाती है, वह क्षेत्रदेवता हमें सदा सुख देनेवाला हो ॥१।। सूत्र-परिचय
पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणके समय क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करते हुए यह स्तुति बोली जाती है ।
५४ चतुर्विशति-जिन-नमस्कारः
[ 'सकलाहत्'-स्तोत्र ]
[ अनुष्टुप् ] सकलाईत्-प्रतिष्ठानमधिष्ठानं शिवश्रियः।
भूर्भुवः-स्वस्त्रयीशानमार्हन्त्यं प्रणिदध्महे ॥१॥ शब्दार्थसकलाईत -प्रतिष्ठानं-जो सर्व । अधिष्ठानं शिवश्रियः-जो मोक्ष
अरिहन्तोंमें स्थित है। सकल-सर्व । अर्हत् - अरि
-लक्ष्मीका निवास स्थान है। हन्तोंमें प्रतिष्ठान - प्रतिष्ठित अधिष्ठान-निवास-स्थान । शिवकिया हुआ है, स्थित है। . । श्री-मोक्षरूपी लक्ष्मी।
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