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सूत्र-परिचय
पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणके समय भुवनदेवताका कायोत्सर्ग करते हुए यह स्तुति बोली जाती है ।
५३ क्षेत्रदेवता-स्तुतिः
[ क्षेत्रदेवताकी स्तुति ] मूलखित्तदेवयाए करेमि काउस्सग्गं । अन्नत्थ०
[ सिलोगो] यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया ।
सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ शब्दार्थखित्तदेवयाए-क्षेत्रदेवताकी आरा- साध्यते-साधी जाती है, की धनाके निमित्तसे।
जाती है। करेमि-मैं करता हूँ। क्रिया-मोक्षमार्गकी आराधना । काउस्सग्गं-कायोत्सर्ग। सा-वह। अन्नत्थ०-इसके अतिरिक्त क्षेत्रदेवता-क्षेत्रदेवता। यस्याः -जिनके।
नित्यं-सदा। क्षेत्र-क्षेत्रका।
भूयात्-हो। समाश्रित्य-आश्रय लेकर । नः-हमें । साधुभिः-साधुओंद्वारा। सुखदायिनी-सुख देनेवाली।
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