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PARE
५२ भुवनदेवता-स्ततिः
[ भुवनदेवताकी स्तुति ]
मूल
भुवणदेवयाए करेमि काउस्सग्गं । अन्नत्थ.
[ गाहा ] ज्ञानादिगुण-युतानां, नित्यं स्वाध्याय-संयम-रतानाम् । विदधातु भुवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् ॥१॥ शब्दार्थभुवणदेवयाए-भुवनदेवताके लिये, नित्यं-निरन्तर ।
भुवनदेवीकी आराधनाके स्वाध्याय - संयम - रतानाम् - निमित्तसे।
स्वाध्याय और संयममें लीन । करेमि-मैं करता हूँ।
विदधातु-करो। काउस्सग्गं-कायोत्सर्गको। भुवनदेवी-भुवनदेवी। अन्नत्थ०-इसके अतिरिक्त० । शिवं-कल्याण, उपद्रव-रहित । ज्ञानादिगुण - युतानां - ज्ञानादि | सदा-सदा।
गुणोंसे युक्तका, ज्ञान, दर्शन सर्वसाधूनाम् – सब साधुओंका, और चारित्रसे युक्त।
साधुओंको। अर्थ-सङ्कलना
भुवनदेवीकी आराधना के निमित्तसे मै कायोत्सर्ग करता हूँ। इसके अतिरिक्त
ज्ञान, दर्शन, और चारित्रसे युक्त, निरन्तर स्वाध्याय और संयममें लीन ऐसे सब साधुओंको भुवनदेवी सदा उपद्रव रहित करे ॥१॥
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