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२९४ गणधर - रचितं - गणधरोंद्वारा सर्वलोक-अखिल विश्व । एक सूत्ररूपमें गुंथे हुए।
सार-अद्वितीय सारभूत । द्वादशाङ्ग-बारह अङ्गवाले। निष्पङ्क - व्योम - नील-द्युतिविशालं-विस्तृत ।
बादल-रहित (स्वच्छ) आकाशचित्रं-अद्भुत ।
की नील-प्रभाको धारण करनेबह्वर्थ- युक्तं-बहुत अर्थोंसे युक्त ।। वाले। मुनिगण वृषभैः-श्रेष्ठमुनि-समूहसे।
निष्पङ्क-बादल रहित, स्वच्छ । वृषभ-श्रेष्ठ ।
व्योम-आकाश। नील -- वर्ण धारितं- धारण किये हुए।
विशेष गहरा बादली रङ्ग । बुद्धिमद्भिः-बुद्धि निधान ।
द्युति-प्रभा। मोक्षान - द्वारभूतं-मोक्षके द्वार ।
अलस - दृशं - आलस्यसे मन्द समान। व्रत-चरण-फलं-व्रत और चारित्र
(मदपूर्ण) बनी हुई दृष्टिवाले । रूपी फलवाले।
अलस-आलस्य । दृश्-दृष्टि । ज्ञेय-भाव-प्रदोपं-जानने योग्य बालचन्द्राभ - दंष्ट्र - द्वितीयाके पदार्थोंको प्रकाशित करने में
चन्द्रकी तरह वक्र दाढ़ोंवाले ।
बालचन्द्र - द्वितीयाका चन्द्र । दोपक-समान ।
आभ-जैसा । दंष्ट्र-दाढ़ । ज्ञेय - जानने योग्य । भावपदार्थ । प्रदीप-दीपक ।
| मत्तं-मत्त । भक्त्या -भक्तिपूर्वक ।
घण्टारवेण - घण्टाओंके नादसे, नित्यं-अहर्निश ।
गले में बँधी हुई घण्टियोंके नादसे । प्रपद्ये-आश्रय ग्रहण करता हूँ। प्रसृत-मदजलं - झरते हुए मदश्रुतं-श्रुतका।
जलको। अहं-मैं।
पूरयन्तं-पूरित करता हुआ, फैलाते अखिलं-समस्त । सर्वलोकैकसारम्-अखिल विश्वमें समन्तात्-चारों ओर। अद्वितीय सारभूत ।
आरूढो-आरूढ, विराजित ।
हुये।
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