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पर।
उन्मृष्ट-पोंछा।
| अप्सरसां-अप्सराओंके नयन-प्रभा - धवलितं - नेत्रकी पयोधर-भर-प्रस्पधिभिः-स्तनकान्तिसे श्वेत बना हुआ, अपनी समूहकी स्पर्धा करनेवालोंसे । नेत्रकान्तिसे ही उज्ज्वल बने हुए। पयोधर-स्तन । भर-समूह । नयन-नेत्र । प्रभा-कान्ति ।
प्रस्पधिन्-स्पर्धा करनेवाला। धवलित-उज्ज्वल बना हुआ। काञ्चनैः-सुवर्ण के बने हुए,सुवर्ण के । क्षीरोदकाशङ्कया - क्षीरोदककी येषां-जिनका।
शङ्कासे, क्षीरसागरका जल रह | मन्दर-रत्नशैल - शिखरे – मेरु
तो नहीं गया ? इस शङ्कासे। पर्वतके रत्नशैल नामक शिखर वक्त्रं-मुखको। यस्य-जिनके।
जन्माभिषेकः-जन्माभिषेक । पुनः पुनः-बार-बार ।
कृतः-किया है। स-वह, वे।
सर्वैः-सबने । जयति-जयको प्राप्त हो रहे हैं। सर्व - सुरासुरेश्वरगणैः - सब श्रीवर्धमानो जिन:-श्रीमहावीर जातिके सुर और असुरोंके जिन ।
इन्द्रोंने। हंसांसाहत - पद्मरेणु - कपिश- सुर-वैमानिक और ज्योतिष्क
क्षीरार्णवाम्भोभृतैः - हंसकी देव । असुर-भवनपति और पाँखोंसे उड़े हुए कमल-पराग व्यन्तरदेव । ईश्वर-स्वामी, से पीत ऐसे क्षीरसमुद्रके जलसे
इन्द्र । गण-परिवार । भरे हुए।
तेषां-उनके। हंस-पक्षि-विशेष । अंस-पक्ष, | नतः-नमन करता हूँ। पाँख । आहत-उड़ा हुआ।
त-उड़ा हुआ। अहं-मैं । पद्म-कमल । रेणु-पराग। क्रमान-चरणोंको, चरणोंमें । कपिश-पीत,पीला। क्षीरा- अर्हवक्त्र-प्रसूतं-श्रोजिनेश्वर णव-क्षीर समुद्र । अम्भ:- देवके मुखसे अर्थरूपमें प्रकटित ।
जल । भृत-भरा हुआ, पूर्ण । अर्हद्-श्रीजिनेश्वरदेव । वक्त्रकुम्भैः -घड़ोंसे ।
___ मुख । प्रसूत-प्रकटित ।
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