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________________ २९३ पर। उन्मृष्ट-पोंछा। | अप्सरसां-अप्सराओंके नयन-प्रभा - धवलितं - नेत्रकी पयोधर-भर-प्रस्पधिभिः-स्तनकान्तिसे श्वेत बना हुआ, अपनी समूहकी स्पर्धा करनेवालोंसे । नेत्रकान्तिसे ही उज्ज्वल बने हुए। पयोधर-स्तन । भर-समूह । नयन-नेत्र । प्रभा-कान्ति । प्रस्पधिन्-स्पर्धा करनेवाला। धवलित-उज्ज्वल बना हुआ। काञ्चनैः-सुवर्ण के बने हुए,सुवर्ण के । क्षीरोदकाशङ्कया - क्षीरोदककी येषां-जिनका। शङ्कासे, क्षीरसागरका जल रह | मन्दर-रत्नशैल - शिखरे – मेरु तो नहीं गया ? इस शङ्कासे। पर्वतके रत्नशैल नामक शिखर वक्त्रं-मुखको। यस्य-जिनके। जन्माभिषेकः-जन्माभिषेक । पुनः पुनः-बार-बार । कृतः-किया है। स-वह, वे। सर्वैः-सबने । जयति-जयको प्राप्त हो रहे हैं। सर्व - सुरासुरेश्वरगणैः - सब श्रीवर्धमानो जिन:-श्रीमहावीर जातिके सुर और असुरोंके जिन । इन्द्रोंने। हंसांसाहत - पद्मरेणु - कपिश- सुर-वैमानिक और ज्योतिष्क क्षीरार्णवाम्भोभृतैः - हंसकी देव । असुर-भवनपति और पाँखोंसे उड़े हुए कमल-पराग व्यन्तरदेव । ईश्वर-स्वामी, से पीत ऐसे क्षीरसमुद्रके जलसे इन्द्र । गण-परिवार । भरे हुए। तेषां-उनके। हंस-पक्षि-विशेष । अंस-पक्ष, | नतः-नमन करता हूँ। पाँख । आहत-उड़ा हुआ। त-उड़ा हुआ। अहं-मैं । पद्म-कमल । रेणु-पराग। क्रमान-चरणोंको, चरणोंमें । कपिश-पीत,पीला। क्षीरा- अर्हवक्त्र-प्रसूतं-श्रोजिनेश्वर णव-क्षीर समुद्र । अम्भ:- देवके मुखसे अर्थरूपमें प्रकटित । जल । भृत-भरा हुआ, पूर्ण । अर्हद्-श्रीजिनेश्वरदेव । वक्त्रकुम्भैः -घड़ोंसे । ___ मुख । प्रसूत-प्रकटित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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