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________________ २८३ भ्युत्थान, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार, सर्व-समाधि-प्रत्ययाकार, लेप, अलेप, अच्छ,११ बहुलेप, ससिक्थ,१३ असिक्थ५४ । (५) आयंबिल और निवी सूर्योदयसे एक प्रहर ( अथवा डेढ़ प्रहर ) तक नमस्कार-सहित, मुष्टि-सहित प्रत्याख्यान करता है। उसमें चारों प्रकारके आहारका अर्थात् अशन, पान, खादिम और स्वादिमका अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिङ्मोह, साधुवचन, महत्तराकार और सर्व-समाधिप्रत्ययाकार-पूर्वक त्याग करता है। आयंबिलका आठ आगार-पूर्वक प्रत्याख्यान करता है :-अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थ-संसृष्ट, उत्क्षिप्त-विवेक, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार और सर्व-समाधि-प्रत्ययाकार। एकाशनका प्रत्याख्यान करता है, उसमें तीनों प्रकारके आहारका अर्थात् अशन, खादिम और स्वादिमका अनाभोग, सहसाकार, सागारिकाकार, आकुञ्चन-प्रसारण, गुर्वभ्युत्थान, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार और सर्व-समाधि-प्रत्ययाकार-पूर्वक त्याग करता है । ___ पानी-सम्बन्धी छ: आगार :- लेप, अलप, अच्छ, बहुलेप, ससिक्थ और असिक्थ । ( ६ ) तिवि(हा)हारका उपवास ( सूर्योदयसे लेकर दूसरे दिनके ) सूर्योदयतक उपवासका प्रत्याख्यान करता है। उसमें तीनों प्रकारके आहारोंका अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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