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प्रच्छन्नकाल, दिङ मोह, साधु-वचन, महत्तराकार और सर्व-समाधिप्रत्ययाकार-पूर्वक त्याग करता है।
(३) पुरिमड्ढ-अवड्ढ
सूर्योदयसे पूर्वार्ध अर्थात् दो प्रहरतक अथवा अपराध अर्थात् तीन प्रहरतक ( नमस्कार-सहित ) मुष्टि-सहित प्रत्याख्यान करता है। उसमें चारों प्रकारके आहारका अर्थात् अशन, पान, खादिम और स्वादिमका अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिङ्मोह, साधु-वचन, महत्तराकार और सर्व-समाधि-प्रत्ययाकार-पूर्वक त्याग करता है ।
( ४ ) एगासण, बियासण और एगलठाण
सूर्योदयसे एक प्रहर अथवा डेढ़ प्रहरतक नमस्कार-सहित, मुष्टि-सहित प्रत्याख्यान करता है। उसमें चारों प्रकारके आहारका अर्थात् अशन, पान, खादिम और स्वादिमका अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिङ्मोह, साधु-वचन, महत्तराकार और सर्व-समाधिप्रत्याकार-पूर्वक त्याग करता है।
अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थ-संसृष्टं, उत्क्षिप्तविवेक, प्रतीत्य-म्रक्षित, पारिष्ठापनिकार, महत्ताकार और सर्व-समाधिप्रत्ययाकार-पूर्वक विकृतियोंका त्याग करता है।
बियासणमें चौदह आगारोंकी छूट होती है, वह इस प्रकार :अनाभोग,' सहसाकार, सागरिकाकार,आकुञ्चन-प्रसारण, गुर्व
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