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________________ शब्दार्थइच्छामि-मैं चाहता हूँ। निसीहिआए-पाप-प्रवृत्तिका परिखमासमणो! हे क्षमा आदि गुण- | त्याग करके अथवा अविनय__ वाले साधु महाराज ! आशातनाकी क्षमा माँगकर। वंदिउं-वन्दन करनेको । मत्थएण-मस्तकसे, मस्तक झुकाजावणिज्जाए-शक्ति सहित अथवा कर। सुखसाता पूछकर। | वंदामि-मैं वन्दन करता हूँ। अर्थ सङ्कलना हे क्षमाशील साधु महाराज ! आपकी मैं सुखसाता पूछकर तथा अविनय-(आशातना ) के लिए क्षमा माँगकर वन्दन करना चाहता हूँ। मस्तक आदि पाँचों अङ्ग झुकाकर मैं वन्दन करता हूँ। सूत्र-परिचय गुरुवन्दनके तीन प्रकार हैं :-(१) फिट्टावन्दन, (२) थोभवन्दन और (३) द्वादशावर्त्तवन्दन । मार्गमें चलते हुए केवल मस्तक झुकाकर जो वन्दन किया जाता है, वह फिट्टावन्दन कहाता है; रुककर शरीरके पाँच अङ्ग नमाकर जो वन्दन किया जाता है, वह थोभ ( स्तोभ ) वन्दन कहाता है; और प्रातः तथा सायं बारह आवर्त्त-पूर्वक जो वन्दन किया जाता है, वह द्वादशावर्त्तवन्दन कहाता है। ___ यह सूत्र थोभ ( स्तोभ ) वन्दन करते समय बोला जाता है और 'खमासमणो' शब्द पहले आनेसे 'खमासमण-सूत्र' के नामसे प्रसिद्ध है। क्षमाश्रमण प्रश्न-खमासमणो शब्दका अर्थ क्या है ? उत्तर-हे क्षमासमण ! अथवा हे क्षमाश्रमण ! Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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