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शब्दार्थ
संकोइअ-पैर लम्बे करनेके बादमें | दव्वाइ - उवयोगं - द्रव्यादिका सिकोड़ने पड़ें तो।
विचार करना; द्रव्य, क्षेत्र, काल,
भावकी विचारणा करनी। संडासा-घुटनोंको ( पूंजकर )।
णिस्सास - निरंभणालोए - उन्वट्टते-करवट बदलना।
श्वासको रोकना और द्वारकी अ-और।
ओर देखना। काय-पडिलेहा-कायाकी पडि- णिस्सास-निःश्वास। निरंभणलेहणा करनी।
रोध, रोकना।
अर्थ-सङ्कलना
यदि पैर लम्बे करनेके बादमें सिकुड़ने पड़ें तो घुटनों को पूंजकर सिकुड़ने और करवट बदलना पड़े तो शरीरका प्रमार्जन करना ( यह इसकी विधि है। यदि कायचिन्ताके लिये उठना पड़े तो) द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावकी विचारणा करनी और ( इतना करनेपर भी यदि निद्रा न उड़े तो हाथसे नाक दबाकर ) श्वासको रोकना और इस प्रकार निद्रा बराबर उड़े तब प्रकाशवाले द्वारके सामने देखना ( ऐसी इसकी विधि है ) ॥ ३॥ मूल
५ सागरी अणसण जइ मे हुज्ज पमाओ, इमस्स देहस्सिमाइ रयणीए । आहारमुवहि-देहं, सव्वं तिविहेण वोसिरिअं ॥ ४ ॥
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