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मूल
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३ संथारेकी विध
अणुजाणह संथारं, बाहुवहाणेण वाम-पासेणं । कुक्कुडि - पाय-पसारण, अतरंत पमज्जए भूमिं ॥ २ ॥
शब्दार्थ
अणुजाण - अनुज्ञा दीजिये ।
संथारं - संथारेकी । बाहुवहाणेण --हाथका ( तकिया ) करने से । बाहु-हाथ । उवहाण - तकिया । वाम-पासेणं - बाँयी करवट से ।
अर्थ-सङ्कलना
(हे भगवन् ! ) संथारेकी अनुज्ञा दीजिये, हाथका तकिया करने से तथा बाँयी करवट सोनेसे ( इसकी विधि को जाती है, वह मैं जानता हूँ ) और मुर्गी की तरह पाँव रखकर (सोना चाहिये यह भी मैं जानता हूँ । यदि इस प्रकार ) सोनेमें अशक्त होऊँ तो भूमिका प्रमार्जन करूँ ( और बादमें पाँव लम्बे करूँ ) ॥ २ ॥
मूल
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उपधान
कुक्कुडि - पाय
पसारण
मुर्गीकी तरह पाँव रखकर सोने । अतरंत अशक्त होऊँ ।
पमज्जए - प्रमार्जन करूँ । भूमि भूमिका |
PERTA
संकोइअ संडासा उव्वते अ काय - पडिलेहा | ४ जगना पड़े तो दव्वाह-उवओगं, णिस्सास - निरंभणालोए ॥ ३॥
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