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________________ २५२ अहोरत' - अहोरात्र | ) ( दिवस और रात्रि पूर्ण हो, वहाँतक । ) पज्जुवासामि - सेवन करू । दुविहं - दो प्रकारसे, करना और करानारूप दो प्रकारोंसे । तिविहेणं-तीन प्रकारसे, मन, वचन और काया इन तीन प्रकारोंसे । मणेणं - मनसे । बायाए - वाणी से | काणं - कायासे । न करेमि-न करूँ । Jain Education International न कारवेमि-न कराऊँ । 1 तस्स - तत्सम्बन्धी सावद्य योगका न भंते ! - हे भदन्त ! हे भगवन् ! | पडिक्कमामि - प्रतिक्रमण करता हूँ, निवृत्त होता हूँ । निदामि - निन्दा करता हूँ, बुरा मानता हूँ । गरिहामि गर्हा करता हूँ, घृणा करता हूँ । अप्पाणं - आत्माका, कषायात्माका । वोसिरामि-वोसिराता हूँ, त्याग करता हूँ । अर्थ- सङ्कलना हे पूज्य ! मैं पोषध करता हूँ । उसमें आहार - पोषध देशसे ( कुछ अंश में ) अथवा सर्वसे ( सर्वांशसे ) करता हूँ, ब्रह्मचर्य - पोषध सर्वसे करता हूँ और अव्यापार - पोषध ( भी ) सर्वसे करता हूँ । इस तरह चार प्रकारके पोषध- व्रतमें स्थिर होता हूँ । जहाँतक दिन अथवा अहोरात्र - पर्यन्त मैं प्रतिज्ञाका सेवन करूँ वहाँतक मन, वचन और कायासे सावद्य - प्रवृत्ति न करूँ और न कराऊँ । हे भगवन् ! इस प्रकारकी जो कोई अशुभ - प्रवृत्ति हुई हो उससे मैं निवृत्त होता हूँ । उन अशुभ प्रवृत्तियों को मैं बुरी मानता हूँ, तत्सम्बन्धी घृणा करता हूँ और इस अशुभ प्रवृत्तिको करनेवाले कषायात्माका मैं त्याग करता हूँ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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