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प्रतिदिन जिनेश्वरदेवकी पूजा करो, नित्य जिनेश्वरदेवको स्तुति करो, निरन्तर गुरुदेवको स्तुति करो, सर्वदा सार्मिक भाइयोंके प्रति वात्सल्य दिखलाओ, व्यवहारकी शुद्धि रखो तथा रथ-यात्रा और तीर्थ यात्रा करो ॥३॥ ___कषायोंको शान्त करो, सत्यासत्यकी परीक्षा करो, संवरके कृत्य करो, बोलने में सावधानी रखो, छः कायके जीवोंके प्रति करुणा रखो, धार्मिकजनोंका संसर्ग रखो, इन्द्रियोंका दमन करो तथा चारित्र ग्रहण करने की भावना रखो ॥ ४ ॥ ___ सङ्घके प्रति बहुमान रखो, धार्मिक पुस्तकें लिखाओ और तीर्थकी प्रभावना करो। ये श्रावकोंके नित्य कृत्य हैं, जो सद्गुरुके उपदेशसे जानना चाहिये ।। ५ ।। सूत्र-परिचय
यह सज्झाय पोषधव्रतमें तथा पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिकप्रतिक्रमणके पहले दिन दैवसिक-प्रतिक्रमणमें बोला जाता है। इसमें श्रावकके करने योग्य ३६ प्रकारके कार्य प्रदर्शित किये गये हैं।
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