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२४४ भासा-समिई-बोलने में साव- चरण-चारित्र । परिणामधानी रखो।
भावना। छज्जीव-करुणा य-छः कायके | संघोवरि बहुमाणो-सङ्घके प्रति जीवोंके प्रति करुणा रखो।
बहुमान रखो। छज्जीव-छः कायके जीव- १) पुत्थय-लिहणं-(धार्मिक) पुस्तकें
पृथ्वीकाय, (२) अप्काय, लिखाओ। (३) तेजस्काय, (४) वायु
पभावणा तित्थे-तीर्थको प्रभाकाय, (५) वनस्पतिकाय
वना करो। और (६) त्रसकाय ।
तीर्थ-प्रभावना-धर्मको उन्नति धम्मिअजण - संसग्गो- धार्मिक
हो ऐसा प्रयत्न। मनुष्योंके संसर्गमें रहो।
| सड्ढाण-श्रावकोंके। करणदमो-इन्द्रियोंका दमन करो।
करण-इन्द्रियाँ । दम-दमन । निच्चं-नित्य । चरण-परिणामो-चारित्र ग्रहण सुगुरूवएसेणं- सद्गुरुके उपकरनेकी भावना रखो।
देशसे ।
अर्थ-सङ्कलना
हे भव्य जीवो ! तुम जिनेश्वरोंकी आज्ञाको मानो, मिथ्यात्वका त्याग करो, सम्यक्त्वको धारण करो और प्रतिदिन छ:प्रकारके आवश्यक करने में प्रयत्नशील बनो ।।१।।
और पर्वके दिनोंमें पोषध करो, दान दो, सदाचारका पालन करो, तपका अनुष्ठान करो, मैत्री आदि उत्तम प्रकारकी भावना करो, पाँच प्रचारके स्वाध्यायमें मग्न बनो, नमस्कार-मन्त्रकी गणना करो, परोपकार-परायण बनो और यथाशक्य दयाका पालन करो॥२॥
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