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________________ २४३ छव्विह - आवस्सयम्मि -- छः । अ-और । प्रकारके आवश्यक करनेमें । जयणा-सावधानी रखो। छ: आवश्यक-१) सामायिक, अ-और। (२) चतुर्विंशति-स्तव, (३) वन्दन, (४) प्रतिक्रमण, जिण-पूआ - जिनेश्वरकी पूजा (५) कायोत्सर्ग और (६) करो। प्रत्याख्यान । जिण-थुणणं-जिन-स्तवन करो। उज्जुत्ता-उद्यमवान्, प्रयत्नशील। गुरु-थुअ-गुरुकी स्तुति करो। होह-बनो। साहम्मिआण - वच्छल्लं-साधपइदिवसं-प्रतिदिन । मिक भाइयोंके प्रति वात्सल्य पव्वेसु-पर्वके दिनोंमें। दिखलाओ। पोसहवयं-पोषधव्रत करो। साहम्मिअ-समान धर्मद्वारा अपना दाणं-दान दो। जीवन व्यतीत करनेवाला । सोलं-सदाचारका पालन करो। वच्छल्ल-स्नेह, प्रेमभाव। तवो-तप, तपका अनुष्ठान करो। ववहारस्स य सुद्धी-और देनेअ-और। लेनेमें प्रामाणिकता रखो, व्यवभावो-भाव, मैत्री आदि उतम हारमें शुद्धि रखो। प्रकारकी भावना करो। विना करा। रह-जत्ता-रथ-यात्रा करो। अ-और। तित्थ-जत्ता य- और तीर्थसज्झाय - नमुक्कारो - स्वाध्याय यात्रा करो। करो और नमस्कार-मन्त्रकी उवसम-विवेग-संवर -उपशम, गणना करो; पाँच प्रकारके विवेक और संवर धारण करो। स्वाध्यायमें मग्न बनो, नम उवसम-कषायकी उपशान्ति । स्कारमन्त्रकी गणना करो। विवेग-सत्यासत्यकी परीक्षा । परोवयरो - परोपकार - परायण संवर-नये कर्म बंधे नहीं, बनो। ऐसी प्रवृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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