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छव्विह - आवस्सयम्मि -- छः । अ-और । प्रकारके आवश्यक करनेमें ।
जयणा-सावधानी रखो। छ: आवश्यक-१) सामायिक,
अ-और। (२) चतुर्विंशति-स्तव, (३) वन्दन, (४) प्रतिक्रमण,
जिण-पूआ - जिनेश्वरकी पूजा (५) कायोत्सर्ग और (६)
करो। प्रत्याख्यान ।
जिण-थुणणं-जिन-स्तवन करो। उज्जुत्ता-उद्यमवान्, प्रयत्नशील। गुरु-थुअ-गुरुकी स्तुति करो। होह-बनो।
साहम्मिआण - वच्छल्लं-साधपइदिवसं-प्रतिदिन ।
मिक भाइयोंके प्रति वात्सल्य पव्वेसु-पर्वके दिनोंमें।
दिखलाओ। पोसहवयं-पोषधव्रत करो। साहम्मिअ-समान धर्मद्वारा अपना दाणं-दान दो।
जीवन व्यतीत करनेवाला । सोलं-सदाचारका पालन करो। वच्छल्ल-स्नेह, प्रेमभाव। तवो-तप, तपका अनुष्ठान करो। ववहारस्स य सुद्धी-और देनेअ-और।
लेनेमें प्रामाणिकता रखो, व्यवभावो-भाव, मैत्री आदि उतम हारमें शुद्धि रखो। प्रकारकी भावना करो।
विना करा। रह-जत्ता-रथ-यात्रा करो। अ-और।
तित्थ-जत्ता य- और तीर्थसज्झाय - नमुक्कारो - स्वाध्याय यात्रा करो। करो और नमस्कार-मन्त्रकी
उवसम-विवेग-संवर -उपशम, गणना करो; पाँच प्रकारके
विवेक और संवर धारण करो। स्वाध्यायमें मग्न बनो, नम
उवसम-कषायकी उपशान्ति । स्कारमन्त्रकी गणना करो।
विवेग-सत्यासत्यकी परीक्षा । परोवयरो - परोपकार - परायण संवर-नये कर्म बंधे नहीं, बनो।
ऐसी प्रवृत्ति ।
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