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४६ सकल-तीर्थ-वंदना
[ 'सकल-तीर्थ-वन्दना' ] मूल
[ चोपाई ] सकल-तीर्थ वन्दं कर जोड़, जिनवर-नामे मंगल कोड़ । पहले स्वर्गे लाख बत्तीश, जिनवर-चैत्य नमूनिश-दीस॥१॥ तीजे लाख अट्ठावीस कह्यां, बीजे बार लाख सद्दयां । चौथे स्वर्गे अड लक्खधार, पांचमे वन्दं लाख ज चार ॥२॥ छठे स्वर्गे सहस पचास, सातमे चालीस सहस प्रासाद । आठमे स्वर्ग छ हजार, नव-दशमे वन्दं शत चार ॥३॥ अग्यार-बारमे त्रणसें सार, नव ग्रेवेयके त्रणसें अढार । पांच अनुत्तर सर्वे मली, लाख चौरासी अधिकां वली ॥४॥ सहस सत्ताणुं त्रेवीश सार, जिनवर-भवन तणो अधिकार । लांबा सौ जोजन विस्तार, पचास ऊंचा बहोतर धार ॥५॥ एकसौ एंशी बिंब प्रमाण, सभा-सहित एक चैत्ये जाण । सौ कोड बावन कोड संभाल, लाख चोराणु सहस चौआल॥६॥ सातसै उपर साठ विशाल, सब बिंब प्रणमं त्रण काल । सात कोड़ ने बहोंतेर लाख, भवनपतिमां देवल भाख ॥७॥ एकसौ एंशी बिंब प्रमाण, एक एक चैत्ये संख्या जाण । तेरसै कोड़ नेव्याशी कोड, आठ लाख वन्दूं कर जोड ॥८॥
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