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________________ २३३ ५३ मेघकुमार:-ये श्रेणिक राजाको धारिणी नामक पत्नोके पुत्र थे। और उच्च कुलीन आठ राजकुमारियोंके साथ इन्होंने विवाह किया था। किन्तु एक समय प्रभु महावीरकी देशना सुनकर, माता-पिताकी आज्ञासे इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। प्रभुने इनको स्थविर साधुओंको सौंप दिया। ( उन साधुओंने दूसरे स्थानपर जाकर रात बितायी। ) नवदीक्षित मेघकुमारका सन्थारा अन्तिम और द्वारके समीप था। इसलिये रात्रिमें लघुशङ्कादि करनेके लिये जाते--आते साधुओंके जाने-आनेसे, उनके पैरका स्पर्श होनेसे, एवं सन्थारेमें धूल पड़नेसे सारी रात नोंद नहीं आयी। तब विचार किया कि प्रातः उठकर ये सब वस्तुएँ प्रभुको सौंपकर घर जाऊँगा । प्रातः सब साधु प्रभु महावीरको वन्दन करने गये तब मेघकुमार भी साथ थे । सर्वज्ञ प्रभु महावीरने इनके द्वारा किया हुआ दुर्ध्यान बतलाकर प्रतिबोध दिया और इनका पूर्वभव कहा तथा हाथीके भवमें खरगोशको बचानेके लिये किस प्रकार अनुकम्पा की थी, यह जानकर इनके मनका समाधान हुआ। फिर चारित्रका निरतिचार पालन करके स्वर्गमें गये और वहाँसे महाविदेह क्षेत्रमें उत्पन्न होकर मोक्षमें जायँगे। महासतियाँ - १ सुलसा :-इनके पतिका नाम नागरथ था, जो श्रेणिककी सेनामें मुख्य रथिक (सारथी ) थे। प्रथम तो उसके कोई सन्तान नहीं थी, किन्तु कालान्तरमें उत्तम धर्माराधना के प्रभावसे तथा प्रसन्न हुए देवकी सहायतासे बत्तीस पुत्र हुए। ये पुत्र पढ़-लिखकर योग्यावस्थामें विवाहके पश्चात् श्रेणिकके अङ्गरक्षक बनकर रहे और श्रेणिक जब सुज्येष्ठाका हरण करने गया तब वीरतापूर्वक लड़कर मृत्युको प्राप्त हुए । ____ अपने बत्तीस पुत्रोंकी एक साथ मृत्यु होनेपर भी भवस्थितिका विचार करके सुलसाने शोक नहीं किया और पतिको भी शोकातुर होनेसे रोका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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