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________________ २३४ सुलसा भगवान् महावीरकी परम श्राविका थी। एक समय अम्बड श्रावकके साथ भगवान महावीरने सुलसा को 'धर्मलाभ' कहलाया। इससे अम्बडके विचार आया कि यह कैसी श्राविका होगी जिसको कि भगवान् महावीर धर्मलाभ कहलाते हैं ? ऐसा विचारकर अम्बडने अपनी ऐन्द्रजालिक विद्यासे सुलसाकी परीक्षा की, परन्तु वह धर्मसे तनिक भी विचलित नहीं हुई। तब उसके घर जाकर भगवान्का धर्मलाभ पहुंचाया और उसकी धर्मके प्रति जो दृढ़ता थी उसकी प्रशंसा की। यह मरकर स्वर्गमें गयीं और वहाँसे च्यवित होकर आनेवाली चौबीसीमें निर्मम नामक 'पन्द्रहवाँ तीर्थङ्कर होंगी। २ चन्दनबाला :-चम्पापुरीमें दधिवाहन नामक एक राजा था। उसकी रानी पद्मावती थी, जिसका दूसरा नाम धारिणी था। उसके वसुमती नामकी एक पुत्री थी। एक दिन कौशाम्बीके राजा शतानीकने उसपर चढ़ाई की जिससे डरकर दधिवाहन राजा भाग गया। सैनिकोंने उसके नगरको लूटा और धारिणी तथा वसुमतीको उठाकर ले गये । अपने शीलकी रक्षाके लिये धारिणो मार्गमें ही अपनी जीभ काटकर मर गयी। कौशाम्बी पहुँचनेके बाद वसुमतीको बाजारमें बेचनेके लिये खड़ा किया गया वहाँ एक सेठने उसको खरीद लिया। उस सेठने वसुमतीका नाम चन्दनबाला रखा। यह अति स्वरूपवती थी। इस कारण सेठकी पत्नी मूलाको शङ्का हुई कि सम्भवतः सेठ स्वयं इसके साथ विवाह करेंगे। एक दिन सेठ जब बाहर--गाँव गया, तब मूलाने चन्दनबालाको एक तलघरमें बन्द कर दिया, उसके पैरमें बेड़ियाँ डाली और मस्तक मुंडवा दिया। इस प्रकार अन्न--जलरहित तीन दिन बीत गये। चौथे दिन सेठको खबर हुई, तब तलघर खोलकर उसको बाहर निकाला और एक सूपेमें उड़दके बाकले ( उबाले हुए उड़द ) देकर, उसकी बेड़ियाँ तुड़वानेके लिये लुहारको बुलाने गया। इधर चन्दनबाला मनमें विचार करती है कि'मेरे तीन दिनका उपवास है, इसलिये यदि कोई मुनिराज पधारें तो उनको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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