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________________ २३१ ४७ विष्णुकुमार :-इनके पिताका नाम पद्मोत्तर और माताका नाम ज्वालादेवी था। इन्होंने श्रीमुनिसुव्रत आचार्यसे दीक्षा ग्रहण की और तपके प्रभावसे अपूर्वलब्धिवाले हुए। एक समय पहले विवादमें हारे हुए धर्मद्वेषी नमुचि प्रधानने द्वेषबुद्धिसे जैन साधुओंको राज्यकी सीमासे बाहर निकालनेकी आज्ञा की। इस बातकी जानकारी होते ही ये जैन साधुओंकी सहायता करने आये और नमुचिसे केवल तीन पग जमीनकी माँग की, उसने देना स्वीकार किया। तब क्रुद्ध विष्णुमुनिने एक लाख योजनका विराट् शरीर बनाकर एक पाँव समुद्रके पूर्व भागपर और दूसरा पाँव समुद्रके पश्चिम भागपर रखा । 'तीसरा पाँव कहाँ रखू' यह कहकर वह पाँव नमुचिके मस्तक पर रखा । जिससे वह मरकर नरकमें गया । देव, गन्धर्व, किन्नर, देवाङ्गना आदिको उपशम-रसमय मधुर सङ्गीत-प्रार्थनासे अन्तमें क्रोध शान्त हुआ। फिर तपश्चर्या करते हुए और शुद्ध चारित्रका पालन करते हुए मोक्ष गये । ४८ आर्द्रकुमार :-ये अनार्य देशमें आये हुए आर्द्रक-देशके राजकुमार थे। इनके पिता आर्द्रक और श्रेणिक राजाको परस्पर गाढ़ मैत्री थी, इस कारण अभयकुमार आर्द्रक राजाके पुत्र आर्द्रकुमारकी भी मैत्री हो गयी । एक समय अपने मित्रको जैनधर्म प्राप्त करानेके लिये अभयकुमार द्वारा प्रेषित जिन--प्रतिमाके दर्शन होनेसे जातिस्मरण ज्ञान हुआ और आर्यदेशमें आकर इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। यह दीक्षा वर्षांतक पालनेके पश्चात्, भोगावली कर्मका उदय होनेसे इनको संसारवास स्वीकृत करना पड़ा और बालकके स्नेह बन्धनसे मुक्त होनेके लिए बारहवर्ष व्यतीत करने पड़े । तदनन्तर इन्होंने फिरसे दीक्षा ली और अनेक जीवोंको प्रतिबोध दिया। इन्होंने गोशालकके साथ धर्मचर्चा करके उसको निरुत्तर किया था। ४९ दृढप्रहारी :-ये यज्ञदत्तनामक ब्राह्मणके पुत्र थे और कुसङ्गसे बिगड़ गये थे। धीरे धीरे ये प्रसिद्ध चोर बन गये। एक बार लट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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