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________________ २३० एक समय ये उज्जयिनोमें आये, तब सरस्वती साध्वी भी वहाँ आयी थी। वह साध्वी जब बाहर जाकर पुनः शहरमें आरही थी, तो वहाँके राजा गर्दभिल्लने उसको अत्यन्त स्वरूपवती देख, पकड़वाकर महलमें भिजवा दिया। इस बातका समाचार मिलते ही सूरिजीने सङ्घको खबर दी तथा अन्य अनेक प्रकारोंसे राजाको समझाया, परन्तु दुराचारी राजा समझा नहीं, तब सूरिजीने वेश-परिवर्तन कर पारस-कूलकी ओर जाकर वहाँके ९६ शक राजाओंको प्रतिबोध देकर गर्दभिल्लपर चढ़ाई करवायी और उसको हराकर सरस्वती साध्वीको छुड़ाया। .... ये कालकाचार्य महाप्रभावक थे। ४३-४४ साम्ब और प्रद्युम्न :-ये दोनों श्रीकृष्णके पुत्र थे। साम्बकी माता जम्बूवती थी और प्रद्युम्नकी माता रुक्मिणी थी। बाल्यकाल में अनेक लीलाएँ करके, कौमार्यावस्थामें विविध पराक्रम दिखलाकर, अन्तमें वैराग्यको प्राप्त होकर, दीक्षित हुए और शत्रुञ्जय पर्वतपर मोक्षमें गये । ४५ मलदेव :-राजकुमारमूलदेव सङ्गीतादि कलामें निपुण थे, किन्तु बहुत जुआ खेलनेवाले थे। पिताने इनको देशनिकाला दिया, तबसे उज्जयिनीमें आकर रहने लगे। सङ्गीत-कलासे देवदत्ता नामकी गणिका तथा उसके कलाचार्य उपाध्याय विश्वभूतिको इन्होंने पराजित कर दिया था। कुछ समयके पश्चात् दानके प्रभावसे ये हाथियोंसे समृद्ध विशाल राज्य तथा गुणानुरागिणी कला-प्रिय चतुर गणिका देवदत्ताके स्वामी हुए । अन्तमें सत्सङ्ग होनेसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और चारित्रका पालनकर स्वर्गमें गये । वहाँसे च्यवित होकर मोक्षको प्राप्त होंगे। ४६ प्रभव स्वामी:-ये पूर्वोक्त श्रीजम्बूस्वामीके यहाँ लग्नकी पहली रातको पाँचसौ चोरोंके साथ चोरी करने गये, वहाँ नवपरिणीत आठ वधुओंके साथ परस्पर चलते हुए आध्यात्मिक संवादको सुनकर प्रतिबुद्ध हुए और सब चोरोंके साथ दीक्षा ग्रहण को । फिर जम्बूस्वामीने शासनका भार इनको सँभलाया। ये चौदहपूर्व के जानकार थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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