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________________ २२९ कहा कि-'ऐसा हिंसामय यज्ञ करनेसे नरककी ही गति प्राप्त होती है : दत्तने इसका प्रमाण माँगा, तब आचार्यने कहा कि 'आजसे सातवें दिन तेरे मुखमें विष्ठा पड़ेगी, यही इसका प्रमाण है।' आचार्यकी यह बात सत्य निकली, और मरकर वह सातवें नरकमें गया । जितशत्रु राजा फिरसे राज्य सिंहासनपर बैठा और उसने कालकाचार्य के उपदेशसे जैनधर्म अङ्गीकार किया। कालकाचार्य (२) :-इनके पिताका नाम प्रजापाल था और वह श्रीपुरका राजा था। __ इनके भानजे बलमित्र और भानुमित्रके आग्रहसे इन्होंने भरुचमें चातुर्मास किया, पर पूर्वभवके वैरी गङ्गाधर पुरोहितने राजाको उलट-पुलट समझाकर युक्तिसे इनको चातुर्मासमें ही दूसरे स्थानके लिये निकलवाया, इसलिये ये वहाँसे प्रतिष्ठानपुरमें चातुर्मास करने गये। वहाँके राजा शालिवाहनने इनका नगर-प्रवेश महान् उत्सवके साथ करवाया। पर्युषणपर्व निकट होनेसे राजाने कहा कि भाद्रपद शुक्ला पञ्चमीके दिन यहाँ इन्द्रमहोत्सव मनाया जाता है इसलिये पर्युषणपर्व पहले अथवा बादमें रखना चाहिये, जिससे हम उसका आराधन कर सके। तब कालकाचार्यने कहा कि-विशिष्ट कारण उपस्थित होनेपर चतुर्थीके दिन इसका आराधन हो सकता है । तबसे पञ्चमीके स्थानपर चतुर्थीकी संवत्सरी हुई। श्रीसीमन्धर स्वामीने इद्रके समक्ष कालकाचार्यकी प्रशंसा की कि'निगोदका स्वरूप कहने में उनके जैसा दूसरा कोई नहीं है।' यह सुनकर इन्द्र ब्राह्मणका रूप लेकर इनके पास आया और इनसे निगोदका स्वरूप पूछा। कालकाचार्यने सब यथार्थ रूपमें कह दिया, जिससे इन्द्र प्रसन्न होकर स्वस्थानपर चला गया। कालकाचार्य (३):-इनके पिताका नाम वज्रसिंह और माताका नाम सुरसुन्दरी था। ये मगध देशके राजा थे। इन्होंने गुणधरसूरिसे दीक्षा ग्रहण की थी। इनकी बहिन सरस्वतीने भी इन्हींके साथ दीक्षा ली थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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