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नौवीं गाथामें ' भन्यानां कृतसिद्धे !' पदसे सिद्धिदायिनीका१४ ' निर्वृति-निर्वाणजननि !' इस पदसे निर्वृति१५ और निर्वाणी१६ नामका और — अभय-प्रदान-निरते ! ' तथा 'स्वस्तिप्रदे !' पदसे अभया१७ और क्षेमङ्करी' का सूचन होता है। दसवीं गाथामें 'शुभावहे !' पदसे शुभङ्करीका' तथा 'धृति-रति--मति-बुद्धिप्रदानाय ' पदसे सरस्वतीका२° सूचन होता है। इसी प्रकार ग्यारहवीं गाथामें श्री-सम्पत्-कीर्ति-यशो-वधिनी ।' पदसे श्रीदेवता, रमा२२, ( सम्पत्ति बढ़ानेवाली ), कोर्तिदा२३ और यशोदा का सूचन होता है। इस प्रकार सातवीं गाथासे लेकर ग्यारहवीं गाथा तक चौबोस नाम गुंथे हुए हैं और बारहवीं तथा तेरहवीं गाथामें सलिलादि-भयोंसे एवं राक्षसादि उपद्रवोंसे रक्षण करनेको तथा
शान्ति, तुष्टि, पुष्टि और स्वस्ति देनेकी प्रार्थना की गई है । प्रश्न-विजया-जया देवोकी मन्त्रस्तुतिमें क्या आता है ? उत्तर-विजया-जया देवीको मन्त्रस्तुतिमें 'ॐ नमो नमो ह्रां ह्रीं हूँ ह्रः
यः क्षः ह्रीं फट फट् स्वाहा' इन मन्त्राक्षर-पूर्वक शिव, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि और स्वस्ति करनेकी प्रार्थना की जाती है। सारांश यह है कि इन दोनों प्रकारकी स्तुतिद्वारा उपद्रवोंका निवारण तथा शान्ति, तुष्टि, पुष्टि और क्षेम प्राप्तिको इच्छा की गयी है और मन्त्रसे
प्रसन्न हुई देवी भक्तोंको यथाभिलषित लाभ देती है । प्रश्न-शान्ति-स्तवकी गाथाएँ कितनी है ? । उत्तर-सत्रह । अन्तकी दो गाथाएँ सुभाषितके रूपमें बोली जाती हैं।
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