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मूल
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४३ पासनाह - जिरण - थुई
[ ' चउकसाय ' - सूत्र ]
[ पादाकुलक ] चउकसाय - पडिमल्लुल्लूरणु, दुज्जय-मयण-बाण-मुसुमूरणु । सरस-पियंगु - वण्णु गय - गामिउ, जयउ पासु भुवणत्तय - सामि ॥ १ ॥ [ अडिल्ल ]
जसु - तणु - कंति - कडप्प सिणिद्धउ, सोहs फणि-मणि - किरणालिद्धउ । नं नव - जलहर तडिल्लय - लंछिउ, सो जिणु पासु पयच्छउ वंछिउ ||२||
शब्दार्थचउक्साय - पडियल्लुल्लूरणु - चार कषायरूपी शत्रु योद्धाओंका नाश करनेवाले । चउक्साय - क्रोध, मान, और लोभ ये चार कषाय । पडिमल्ल - सामने लड़नेवाला योद्धा । करनेवाला |
माया
उल्लुल्लूरण-नाश
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दुज्जय-मयण-बाण-मुसुमूरणुकठिनाईसे जीते जायँ ऐसे कामदेव के बाणों को तोड़ देनेवाले |
दुज्जय- कठिनाईसे जीता जाने वाला । मयण-बाण-कामदेवके बाण | तोड़ देनेवाला ।
मुसुमूरणु
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