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________________ '२०.३ इस परिस्थितिमें कुछ सुरक्षित रहे हुए श्रावक जिनचैत्यमें एकत्रित होकर विचार करने लगे, तब आकाशसे आवाज़ हुई कि 'तुम चिन्ता क्यों करते हो ? नाडूल नगरी में श्रीमान देवसूरि विराजते हैं, उनके चरणोंके प्रक्षालित जलसे अपने घरों पर छिड़काव करो, जिससे सम्पूर्ण उपद्रव शान्त हो जायगा । इस वचनसे आश्वासन पाये हुए संघने वीरदत्त नामके एक श्रावकको विज्ञप्ति - पत्र देकर नाडूल नगर में विराजित ( नाडोल - मारवाडमें ) श्रीमान देवसूरि के पास भेजा । सूरिजी तपस्वी, ब्रह्मचारी और मन्त्रसिद्ध महापुरुष थे तथा लोकोपकार करनेकी परम निष्ठावाले थे, इससे उन्होंने शान्ति - स्तव नामका एक मन्त्रयुक्त चमत्कारिक स्तोत्र बनाकर दिया और चरणोदक भी दिया । यह शान्ति-स्तव लेकर वीरदत्त शाकम्भरी नगरी में आया । वहाँ उनके चरणजलको ( शान्ति-स्तवसे मन्त्रित ) अन्य जलके साथ मन्त्रित कर छिड़काव करनेसे तथा शान्ति - स्तवका पाठ करनेसे महामारीका उपद्रव शान्त हो गया, तबसे यह स्तव सब प्रकार के उपद्रवोंके निवारणार्थ बोला जाता है । प्रतिक्रमण में यह कालान्तर में प्रविष्ट हुआ है । शान्ति स्तव प्रश्न - शान्ति - स्तवकी रचना किसने की है ? उत्तर - शान्ति - स्तवकी रचना वीरनिर्वाणकी सातवीं शताब्दी के अन्तिम भागमें हुए श्रीमान देवसूरिने की है । प्रश्न – उन्होंने इस स्तवकी रचना किसलिये की ? - उत्तर— उन्होंने इस स्तवकी रचना शाकम्भरी नगरी में शाकिनीद्वारा किये हुए महामारीके उपद्रवका शमन करनेके लिए की थी, परन्तु इसमें विशेषता यह रखी कि इसका विधिवत् पाठ करनेसे अनेक प्रकारके भय दूर हों और उपद्रव शान्त हों । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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