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________________ २०२ पूज्यमाने जिनेश्वरे-जिनेश्वर देवका पूजन करनेसे । मन:-मन । प्रसन्नताम् एति-प्रसन्नताको प्राप्त होता है। अर्थ-सङ्कलना [श्रीजिनेश्वर देवका पूजन करनेसे समस्त प्रकारके उपसर्ग नष्ट होते हैं, विघ्नरूपी लताएं कट जाती हैं और मन प्रसन्नताको प्राप्त होता है ॥१८॥ मूलसर्व मङ्गल-माङ्गल्यं, सर्व-कल्याणकारणम् । प्रधानं सर्व-धर्माणां, जैन जयति शासनम् ॥१९॥] शब्दार्थ___ सर्व-मङ्गल-माङ्गल्यं०-अर्थ पूर्ववत्० अर्थ-सङ्कलना सर्व मङ्गलों में मङ्गलरूप, सर्व कल्याणोंका कारण रूप और सर्व धर्मों में श्रेष्ठ ऐसा जैनशासन (प्रवचन) सदा जयवाला है ॥१९॥] सूत्र-परिचय___वीर-निर्वाणकी सातवीं शताब्दीके अन्तिम भागमें शाकम्भरी नगरीमें किसी कारणसे कुपित हुई शाकिनीने महामारीका उपद्रव फैलाया। यह उपद्रव इतना भारी था कि इसमें ओषध और वैद्य कुछ भी काम नहीं आ सकते थे। इसलिये प्रतिक्षण मनुष्य मरने लगे और सारी नगरी श्मशान जैसी भयङ्कर दिखने लगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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