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अर्थ- सङ्कलना
कनिष्ठ उपासकों का शुभ करनेवालो, सम्यग्दृष्टिवाले जीवोंको धृति, रति, मति और बुद्धि देने में सदा तत्पर रहनेवाली, जैनधर्म में अनुरक्त तथा शान्तिनाथ भगवान्को नमन करनेवाली जनताके लिये लक्ष्मी, सम्पत्ति, कोति और यशमें वृद्धि करनेवाली हे देवि ! आपकी जगत् में जय हो ! विजय हो ! ॥ १०-११ ॥
मूल
सलिलानल - विष - विषधर - दुष्टग्रह - राज-रोग-रण-भयतः । राक्षस - रिपुगण - मारी - चौरेति - श्वापदादिभ्यः ॥ १२ ॥
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अथ रक्ष रक्ष सुशिवं, कुरु कुरु शान्ति च कुरु कुरु सदेति । तुष्टिं च कुरु कुरु पुष्टिं कुरु कुरु स्वस्ति च कुरु कुरु त्वम् ॥ १३ ॥
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शब्दार्थ
सलिलानल - विष
दुष्टग्रह - राज
भयतः - जल,
विषधररोग-रणअग्नि, विष, सर्प, दुष्टग्रह, राजा, रोग और युद्ध - इन आठ प्रकारके भयोंसे । सलिल-जल | अनल - अग्नि । विष - जहर । विषधर - सर्प । दुष्ट- ग्रह - गोचर में
स्थित
अशुभ ग्रह |
रण - युद्ध ।।
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राक्षस - रिपुगण - मारी-चौरेति - श्वापदादिभ्यः - राक्षस,
शत्रुसमूह, महामारी, चोर, सात ईति हिंस्र - पशु आदिके उपद्रवसे ।
अथ - अब ।
रक्ष रक्ष रक्षण कर, रक्षण कर ।
सुशिवं कुरु कुरु - उपद्रव रहित कर, उपद्रव रहित कर ।
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