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________________ १७४. कुल-गणे-कुल और गणके प्रति । | सीसे-मस्तकपर । कुल-एक आचार्यका समुदाय । | सव्वं-सबको । गण-तीन कुलोंका समूह । खमवइत्ता-क्षमा माँगकर । अ-और। खमामि-क्षमा करता हूँ। जे मे केइ कसाया-मैंने जो कोई सव्वस्स-सबको। ___ कषाय की हो। अहयं पि-मैं भी। सव्वे-उन सबकी। सव्वस्स जीवरासिस्स-सकल ___ जीवराशिकी। तिविहेण-तीन प्रकारोंसे, मन, भावओ-भावसे, अन्तःकरणसे । _वचन और कायासे । धम्म-निहिय-निय-चित्तोखामेमि-क्षमा माँगता हूँ। धर्मके विषयमें स्थापित किया सव्वस्स-सकल। है चित्त जिसने ऐसा मैं, धर्मसमण-संघस्स-श्रमण-सङ्घके ।। भावना-पूर्वक । भगवओ-पूज्य । सव्वं खमावइत्ता, खमामि अंजलिंकरिअ-हाथ जोड़कर। सव्वस्स अहयं पि-पूर्ववत् । । अर्थ-सङ्कलना __आचार्य, उपाध्याय, शिष्य, सार्मिक, कुल और गणके प्रति . मैंने जो कोई कषाय की हों, उन सबकी मैं मन, वचन और कायासे क्षमा माँगता हूँ।। १ ॥ __ मस्तकपर हाथ जोड़कर पूज्य ऐसे सकल श्रमण-सङ्घसे क्षमा माँगकर मैं भी सबको क्षमा देता हूँ ॥ २॥ अन्तःकरणसे धर्मभावना-पूर्वक सकल जीवराशिसे क्षमा माँगकर मैं भी उनको क्षमा करता हूँ ।। ३ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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